अग्रसेन की बावली एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. भारत की राजधानी नई दिल्ली में कनॉट प्लेस, जंतर मंतर के पास हैली रोड पर स्थित अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह बावड़ी प्राचीन समय की उत्कृट कला का नमूना है.
अग्रसेन की बावली घुमावदार सीढ़ियों के लिए पहचानी जाती है.इस बावली में करीब 105 सीढ़ियां हैं. इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन ने कराया था. इस बावली का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है.
अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली की बेहतरीन बावलियों में से एक है. जंतर मंतर के निकट, हेली रोड पर स्थित इस बावली में कभी दिल्ली के लोग तैराकी सीखने के लिए आते थे.
यह बावली क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची है और इसके बारे में एक मान्यता यह भी है कि इसका निर्माण अग्रसेन ने नहीं, बल्कि महाभारत काल में कराया गया था और बाद में 14वीं शताब्दी में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार कराया, जिसके कारण अग्रसेन बावली के नाम से जाना जाने लगा. यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अभी भी अच्छी स्थिति में हैं.
बावली का इतिहास
अग्रसेन बावली के नाम से जानी जाने वाली इस बावड़ी की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुग़लक़ तथा लोदी काल से मेल खाती है. इतिहासकारों का मानना है कि इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएं तुग़लक़ और लोदी काल की तरफ़ संकेत कर रहे हैं, लेकिन कहा जाता है कि इस प्राचीन बावली को अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज उग्रसेन ने बनवाया था.
इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लंबी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है. बावली में आने के लिए पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है. यह एक ठोस ऊंचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है. इसके स्थापत्य में व्हेल मछली की पीठ के समान छत का निर्माण किया गया है.
अग्रसेन की बावली से जुड़े रोचक तथ्य
1. माना जाता है कि अग्रसेन की बावली का निर्माण राजा अग्रसेन द्वारा किया गया था, परंतु इसका कोई पुख्ता सबूत या ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है. वहीं भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के अनुसार 1868 में इस स्मारक का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था. इस स्मारक को ओजर सेन की बावली के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
2. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं.
3. कहा जाता है कि एक समय इसमें काला पानी हुआ करता था, जो लोगों को अपनी और लुभा कर आत्महत्या करने को प्रेरित करता था. हालांकि आज के समय में यह कुआं पूरी तरह से सुख गया है.
4. इसको देश की सबसे भयावह जगहों में भी गिना जाता है. ऊपर-ऊपर से तो यह बावली लाल बलुए पत्थरों से बनी दीवारों के कारण बेहद सुंदर लगती है, लेकिन आप जैसे-जैसे इसकी सीढ़ियों से नीचे उतरते जाते हैं, एक अजीब सी गहरी चुप्पी फैलने लगती और आकाश गायब होने लगता है.
5. इस बावली के शांत वातावरण में जब कबूतरों की गुटरगूं और चमकादड़ों की चीखें और फड़फड़ाहट गूंजती है, तो बावली का माहौल पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है
6. साल 2012 में भारतीय डाक द्वारा अग्रसेन के बावली पर डाक टिकट भी जारी किया गया है.
7. अग्रसेन की बावली को कई फिल्मों में दिखाया गया है और यह दिल्ली में प्रसिद्ध फिल्म शूटिंग स्थानों में से एक है. यह हिन्दी बॉलीवुड फिल्म पीके और झूम बराबर झूम में दर्शाई गई है.
8. माना जाता है की इस बावली को तुगलक काल के दौरान पुनर्निर्मित किया गया था. बावली की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन 13वी.16वी ईस्वी तुग़लक़ तथा लोदी काल के समकालीन लगती है.
9. बावली के पश्चिमी कोने में एक छोटी सी मस्जिद भी बनी है. इस मस्जिद के स्तंभों में कुछ ऐसे विशेष लक्षण और रंग रूप उभरे हुए हैं, जो बौद्ध काल की कुछ असाधारण संरचनाओं से मेल खाते हैं.
10. इस बावली का नक्शा इसके ढांचे के उत्तर-पश्चिमी दिशा की ओर एक और इसी के समान संरचना दिखाता है. यह संरचना 1911 में दिल्ली में शुरू हुए शहरी विस्तार के बाद धीरे-धीरे गायब हो गई.