यहां हम आपको बता दें कि जब केंद्र सरकार के पास पूर्ण बजट पेश करने के लिए समय नहीं होता है तो वह अंतरिम बजट पेश करती है. लोकसभा चुनाव के दौरान सरकार के पास वक्त तो होता है लेकिन परंपरा के मुताबिक चुनाव पूरा होने तक के समय के लिए बजट पेश करती है.
यह पूरे साल की बजाय कुछ समय तक के लिए ही होता है. हालांकि अंतरिम बजट ही पेश करने की बाध्यता नहीं होती है लेकिन परंपरा के मुताबिक इसे अगली सरकार पर छोड़ दिया जाता है. नई सरकार के गठन बाद वह आम बजट पेश करती है.
अंतरिम बजट और आम बजट में ये है अंतर, दोनों ही बजट में सरकारी खर्चों के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है लेकिन परंपरा के कारण अंतरिम बजट आम बजट से अलग हो जाता है. अंतरिम बजट में आमतौर पर सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं करती, इसकी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
आमतौर पर होता रहा है कि चुनाव के बाद गठित सरकार ही अपनी नीतियों के मुताबिक फैसले ले और योजनाओं की घोषणा करे. हालांकि कुछ वित्त मंत्री पूर्व टैक्स की दरों में कटौती जैसे नीतिगत फैसले ले चुके हैं.
जब केंद्र सरकार पूरे साल की बजाय कुछ ही महीनों के लिए संसद से जरूरी खर्च के लिए अनुमति लेनी होती है तो वह अंतरिम बजट की बजाय वोट ऑन अकाउंट पेश कर सकती है. अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट दोनों ही कुछ ही महीनों के लिए होते हैं लेकिन दोनों के पेश करने के तरीकों में तकनीकी अंतर होता है.