देहरादून| हर चुनावी मौसम की तरह इस बार भी उत्तराखंड के चुनाव से पहले यही सवाल है कि क्या इस बार इस राज्य में कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आएगी? इस सवाल के जवाब में बीजेपी के पास डबल इंजन सरकार का मंत्र है और सत्ता में वापसी का भरोसा जता रही है.
कुछ दिन पहले मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा भी, ‘भाजपा चौंकाने वाली पार्टी है. आप बस इंतज़ार कीजिए, हम परंपरा तोड़कर नया इतिहास रचेंगे और भाजपा फिर सत्ता में आएगी.’ उत्तराखंड में यूं तो मुकाबला हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच रहा है, लेकिन इस बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने चुनाव मैदान को दिलचस्प कर दिया है.
उत्तराखंड में अगर 2021 में बहुत से उलझाव भरे मोड़ रहे, तो 2022 की शुरुआत में ही सियासी रोमांच की पूरी संभावना बन चुकी है. अस्ल में, इस सियासी जंग की शुरुआत मार्च 2021 में हुई, जब त्रिवेंद्र रावत को कुर्सी से हटाकर तीरथ सिंह रावत को लाया गया.
विवादास्पद बयानों और कुंभ कोविड टेस्टिंग घोटाले के सामने आने के बाद चार महीने से भी कम वक्त में तीरथ की विदाई हुई और युवा पुष्कर धामी को बीजेपी मुख्यमंत्री के तौर पर लाई. इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस को एक मौके का विश्वास दिया और पार्टी कमर कसकर तैयार हो गई.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने न केवल चुनाव अभियान की कमान संभाली बल्कि अपने खेमे के गणेश गोदियाल की कुर्सी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सुरक्षित करवाई. कांग्रेस ने विपक्षी भाजपा के भीतर उठापटक में भी कामयाबी पाई और कैबिनेट मंत्री व प्रमुख दलित नेता यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे को भी अपने पाले में कर लिया. कुल मिलाकर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो चुका है.
इस बार आप की वोट शेयरिंग से बदलेगा गणित?
2002 से 2012 के बीच वोट शेयरिंग के आंकड़े देखे जाएं तो भाजपा और कांग्रेस के बीच अंतर मामूली रहा. 2017 में यह अंतर बढ़ा जब 70 में से 57 सीटें जीतने वाली भाजपा को 47 फीसदी वोट शेयर मिला और कांग्रेस को 33 फीसदी. सियासी कमेंटेटर मनमोहन भट्ट कहते हैं, ‘पिछली बार बसपा, यूकेडी और दूसरी पार्टियों का वोट शेयर बीजेपी को चला गया लेकिन अब आप के होने से कम से कम 10% वोट तो छिन जाएंगे. भाजपा के लिए 2017 जितना आसान तो यह रण नहीं है.’
बीजेपी के लिए क्यों अहम है उत्तराखंड?
इस महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा की. इससे पहले वह दीवाली के अगले दिन केदारनाथ में थे. इस महीने के आखिर में फिर उत्तराखंड में रैली करेंगे. भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन कौशिक का कहना है कि इतने दौरे दर्शाते हैं कि पीएम राज्य के विकास के लिए चिंतित रहते हैं. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल का कहना है कि ‘भाजपा के लिए हिंदू राजनीति के लिहाज़ से उत्तराखंड अहम है. देवभूमि में हारना भाजपा की इस छवि को धक्का पहुंचाता है.’
साभार-न्यूज़ 18