बद्रीनाथ से 25 किलोमीटर दूर संतोपथ झील में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अशीर्वाद मिलता है. स्कंद पुराण में भी बताया गया है कि इस झील के तीनों कोनों पर तीनों देवताओं का वास है. ये झील तिकोनी है. मान्यता है कि हर साल सितंबर माह की एकादशी के दिन ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक साथ इस झील में स्नान करते हैं. एकादशी में यहां स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है. संतोपथ में स्नान करने वालों में विदेशियों की संख्या ज्यादा होती है.
हिमालय की गोद में स्थित इस झील तक पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन है. यहां अलकनंदा और लक्ष्मण गंगा का संगम स्थल भी है. जिसे गोविंद घाट कहा जाता है. पौराणिक और लोक कथाओं के अनुसार पांचों पांडव और द्रौपदी अपने अंतिम समय में सब कुछ त्यागकर सशरीर स्वर्ग जाने के लिए बद्रीनाथ से आगे माणा गांव होते हुए स्वर्गरोहिणी की ओर प्रस्थान कर गए, लेकिन मार्ग की कठिनाइयों और प्रतिकूल मौसम के कारण एक-एक कर उनका देहावसान होता चला गया और केवल युधिष्ठिर ही जीवित रहे और वही धर्मराज के साथ सशरीर स्वर्ग जा सके.
कुछ लोग ऐसा भी मानकर चलते हैं कि बाकी चारों पांडवों और द्रौपदी को कुछ घमंड हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप वे लोग सशरीर स्वर्ग नहीं पहुंच पाए. उत्तराखंड के चार धामों में से एक बद्रीनाथ तक आप बस या कार से आसानी से पहुंच सकते हैं. इससे आगे भारत के इस तरफ के अंतिम गांव माणा तक जाने के लिए भी अब आपको कोई न कोई गाड़ी मिल जाती है, लेकिन सतोपंथ और स्वर्गरोहिणी जाने के लिए पैदल ही लगभग 28 किमी. का दुर्गम रास्ता तय करना होता है.
सतोपंथ ताल बहुत पवित्र माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन इस हरे रंग के पानी वाले त्रिभुजाकार पवित्र ताल में तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करने के लिए आते हैं. कुछ वर्ष पहले तक स्वर्गरोहिणी का रास्ता माणा गांव से वसुधारा फॉल होते हुए जाता था, लेकिन आगे अलकनंदा नदी के धानू ग्लेशियर के टूट जाने के कारण अब यह रास्ता वसुधारा फॉल की विपरीत दिशा से होकर जाता है.