गुड फ्राइडे 2021: जानिए क्यों मनाया जाता है गुड फ्राइडे, क्या है इसका महत्व और इतिहास

भारत त्योहारों का देश है, जहां सभी धर्मों के पर्व बहुत ही उल्लास के साथ मनाए जाते हैं. गुड फ्राइडे का त्योहार भी इनमें से एक है. ईसाई धर्म के लोगों का यह त्योहार ईस्टर संडे से ठीक पहले वाले शुक्रवार को मनाया जाता है.

इस साल गुड फ्राइडे 2 अप्रैल को पूरी दुनिया में मनाया जाएगा. इस दिन को लोग होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे या ग्रेट फ्राइडे के नाम से भी जानते हैं.

इस वजह से मनाया जाता है गुड फ्राइडे
धर्म अवमानना और राजद्रोह के आरोप में यीशू को गोलगोथा नाम की सूली पर चढ़ा दिया गया, जिससे उनकी मौत हो गई. जिस दिन यूशी को सूली चढ़ाया गया उसे ही गुड फ्राइडे कहा जाता है. ईसाई धर्म के लोग इसे बहुत ही पवित्र समय मानते हैं. इस दिन उनके बलिदान को याद करते हैं और उपवास रखते हैं.

चर्च में उनके जीवन के आखिरी पलों को दोहराया जाता है और लोगों की सेवा की जाती है. हर साल गड फ्राइडे के मौके पर ईसाई धर्म के लोग यीशू के बलिदान को याद करते हैं और इस दिन लोगों की सेवा करते हैं.

मानवता का उपदेश
विद्वानों की मानें तो 2000 साल पहले यरुशलम के गैलिली प्रांत में ईसाई लोगों को ईसा मसीह ने लोगों को मानवता, एकता और अहिंसा का उपदेश दिया था. ईसा मसीह के व्यक्तित्व से लोग इतने प्रभावित हुए कि उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया. इस दिन लोग उपवास रहते हैं और चर्च में प्रार्थना में भाग लेते हैं. चर्च में इस दिन झांकी निकाली जाती है. गुड फ्राइडे के बाद आने वाले संडे को इस्टर संडे मनाया जाता है.

निर्दोष होते हुए भी ईसा को क्रूस पर चढ़ाया गया
शुक्रवार के दिन निर्दोष होते हुए भी ईसा को क्रूस पर चढ़ाया गया, जहां उन्होंने ऊंचे स्वर से पुकारकर कहा, ‘हे पिता! मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं. यह कहकर उन्होंने प्राण त्याग दिया. तब पृथ्वी डोल उठी और चट्टानें भी तड़क गईं. कब्रें खुल गईं और सोए हुए बहुत से पवित्र लोगों के शव जीवित हो उठे.

पापों में डूबी मानव जाति की मुक्ति के लिए अपने महान त्याग के लिए प्रभु ईसा मसीह ने भी शुक्रवार का ही चयन किया. यह मृत्यु मानव में सत्य, अहिंसा, क्षमा, प्रेम तथा त्याग की ज्योति जलाने हेतु ही थी. अतः इस शुक्रवार को पवित्र व शुभ माना जाता है.

कैसे मनाया जाता है गुड फ्राइडे
इस दिन लोग चर्च में जाकर प्रभु यीशू को याद करते हैं. कुछ लोग यीशू की याद में काले वस्त्र पहनकर मातम मनाते हैं और पदयात्रा भी निकालते हैं. इस दिन कैंडिल नहीं जलाई जातीं और न ही घंटियां बजाई जाती हैं. लोग लकड़ी से खटखट की आवाज करते हैं. चूंकि इस दिन को भलाई का दिन माना जाता है, इसलिए ज्यादातर लोग सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. पौधारोपण करते हैं और दान देते हैं.

‘लेंट’ की रस्म
लोग ईसा मसीह के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए 40 दिन पहले से उपवास भी रखते हैं. इस रस्म को ‘लेंट’ के नाम से जाना जाता है। उपवास करने के बाद मीठी रोटी बनाकर खाई जाती है.

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