एक नज़र इधर भी

नए किरायेदारी एक्‍ट को लेकर समझिए सारी जानकारी

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सांकेतिक फोटो

भारत के शहरों की आबादी 2018 से 2030 के बीच दोगुनी होने का अनुमान है. दिल्ली इस धरती का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर होगा. भारत के शहरों में इतने बड़े स्तर पर प्रवास होना घरों के बाजार पर दबाव बना रहा है.

तकनीकी समूह (टीजी-12) की शहरी मकानों की किल्लत के अनुमान पर 2012 में तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में भारत में आर्थिक कमजोर वर्ग और कम आय समूह का 96 फीसद घरों की कमी से जूझ रहा है. ऐसे हालात में किफायती और भरोसेमंद किराए के मकानों की नीति बहुत अहम हो जाती है.

2011 की जनगणना के मुताबिक देश भर में 1 करोड़ 10 लाख आवास इकाइयां खाली पड़ी हुई थी. इसके साथ 2012 में करीब 1 करोड़ 90 लाख इकाइयों की कमी एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश करती है. ऐसी कई नीतियां हैं जिसकी वजह से घरों के मालिक किराए पर देने के बजाए अपने घरों को खाली रखना बेहतर समझते हैं.

सबसे पहले भारतीय राज्यों में किरायेदारों का समर्थन करने वाला किराया नियंत्रण कानून एक बाधा बना हुआ है. ये कानून मकानमालिकों से ज्यादा किरायेदारों के हितों की रक्षा करते हैं. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 2012 में जुटाए गए डाटा के मुताबिक 71 फीसद लोग जो किराये के मकान में रह रहे हैं उनके पास लिखित अनुबंध नहीं था.

इस अनौपचारिकता के पीछे एक वजह किराए नियंत्रण कानून का किरायेदारों के पक्ष में होना है, दूसरा कई जगह पर मकान ही गैरकानूनी तरीके से बनाए गए हैं. वहीं घरों से जुड़े विवादों में न्यायिक प्रक्रिया में देरी भी मकान मालिकों को हतोत्साहित करती है. किराये के मकानों के क्षेत्र में हो रही दिक्कतों को देखते हुए केंद्र ने हाल ही में आदर्श किरायेदार अधिनियम 2021 को पारित किया, जिससे भारत में किराये के मकानों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है.

ये कानून सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूदा किराया नियंत्रण कानून को रद्द करने, किराये से जुड़ी मौद्रिक सीमा को हटाने और बाज़ार मूल्य के हिसाब से किरायेदार और मकानमालिकों को बातचीत की अनुमति प्रदान करने की बात करता है.

ये कानून किराएदार और मकानमालिक दोनों के लिए मौजूद कानून की चुनौतियों जैसे अवैध कब्जा/बेदखली, सुरक्षा के नाम पर मनमाना डिपोजिट और निर्माण कार्य या सरंचनात्मक रखरखाव से जुड़ी मांगे और कानूनी लागत की ओर इशारा करता है.

ये अधिनियम किराए से जुड़े विवादों के लंबे वक्त से चल रहे विवादों को सुलझाने के लिए विशेष फास्ट ट्रेक कोर्ट की पैरवी भी करता है. विश्व बैंक की 2018 में आई बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक वाणिज्यिक सिविल सूट को जिला न्यायालय में निपटने में औसतन 1445 दिन लगते हैं.

आदर्श किरायेदारी अधिनियम 2021 में तीन-स्तरीय विवाद निपटान तंत्र के जरिए बेहतर व्यवस्था की कल्पना की गई है. हालांकि लंबी मुकदमेबाजी अभी भी सिरदर्द बनी हुई है. जबकि अपील के दूसरे और तीसरे स्तर पर न्यायिक निकायों को 60 दिनों के भीतर मामला निपटाना होता है. किराया प्राधिकरण की प्रथम श्रेणी में ऐसी कोई समय सीमा नहीं है.

आदर्श किरायेदारी अधिनियम 2021 आने के बाद किराये के मकानों के क्षेत्र में निजी भागीदारी के बढ़ने की भी उम्मीद जताई जा रही है. इससे कानूनी तरीके से निजी क्षेत्र ‘किराए के लिए निर्माण’ और ‘किराए से अपना’ जैसे मॉडल के जरिए किफायती किराए के घरों की पेशकश कर सकते हैं. किराए के लिए निर्माण मॉडल के तहत सही जगह पर निर्माण, जहां काम और शिक्षा से जुड़े संस्थान मौजूद हों, जनसंख्या का ध्यान रखते हुए ऐसा मॉडल तैयार किया जाएगा जहां मकान मालिक को भी नियमित आय मिलेगी. वहीं किराए से अपना म़ॉडल के तहत मकान मालिक भविष्य में अपना मकान किराएदार को बेचेगा इस बात की सहमति होगी.

इसमें ज़रूरी कागजी कार्यवाही पूरी कर ली जाएगी और भविष्य में स्वामित्व का स्थानान्तरण हो जाएगा. ब्रिटेन, खाड़ी देश और अफ्रीका में ये मॉडल काफी चर्चित है. आगे भारत के भी कई शहरों में भी अपनाया जा सकता है जहां मकान निर्माता बहुत बड़ी रहने के लिए तैयार प्रॉपर्टी लेकर बैठे हैं जो बिकी नहीं है.

इस तरह आदर्श किरायेदारी अधिनियम 2021 किरायेदारी के मामले में उम्मीद पैदा करता है और इसके साथ ही पहले के किराया नियंत्रण कानून की वजह से मकान मालिक जो घरों की देखरेख नहीं करवाते हैं मुंबई की चॉल इसका एक बड़ा उदाहरण हैं. जहां किराये ना बढ़ाने की अनुमति नहीं मिलने की वजह से मकान जीर्ण शीर्ण हालत में हैं और एक खतरा बने हुए हैं.

चूंकि इन मकानों में रहने वाले कम आय समूह और प्रवासी रहते हैं तो उनकी जिंदगी भी पर खतरा बना रहता है. बीते दिनों मुंबई सहित कई शहरों में ऐसी इमारतों के गिरने की खबर भी सुनने को मिली थी. इसलिए आदर्श किरायेदारी अधिनियम से इतर एक तंत्र की ज़रूरत हैं जिससे किरायेदारों को सुरक्षित और बेहतर गुणवत्ता के मकान मिलने सुनिश्चित हो सके. साथ ही मकानमालिकों को भी उससे उचित आय प्राप्त होती रहे.

आदर्श अधिनियम केंद्र सरकार ने राज्यों को भेज दिया है, अब स्थानीय स्तर पर इसमें बदलाव पर बातचीत होनी है. ये कानून भारत के घरों के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकता है. इसके जरिए राज्यों को खाली घरों से आर्थिक सुधार का मौका है और देश की एक बड़ी आबादी को बेहतर मकान मिलने की उम्मीद है.

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