जनजातियां किसी भी समाजिक परिवेश का वह हिस्सा होती हैं जिनकी परंपराएं और संस्कृति उस राज्य के बहुल जातियों से अलग होती हैं. इनके लिए सामान्यतः प्रयुक्त होने वाला शब्द आदिवासी है. जो पहाड़ियों या जंगलों में रहने वाले प्रदेश के मूल निवासी होते हैं.
उत्तराखण्ड की प्रमुख जनजातियाँ थारु, जौनसारी, बोक्सा, भोटिया तथा राजि जनजाति के नाम से पहचानी गई है. उत्तराखण्ड में निवास करने वाली इन प्रमुख जनजातियों को 1967 के अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखा गया है.
उत्तराखण्ड की प्रमुख जनजातियाँ थारु, जौनसारी, बोक्सा, भोटिया तथा राजि में से सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति थारु है तथा सबसे कम जनसंख्या वाली जनजाति राजी है. इन जनजातियों की सबसे अधिक संख्या उधमसिंहनगर तथा सबसे कम संख्या रुद्रप्रयाग जिले में देखने को मिलती हैं. नीचे उत्तराखण्ड की प्रमुख जनजातियाँ और उनके बारे में संक्षिप्त विवरण दिया गया है.
1. थारु जनजाति
थारु जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी जनजाति है. जो उधमसिंहनगर नगर के खटीमा, किच्छा और सितारगंज के 141 गाँवों में निवास करती है. उत्तराखण्ड के अलावा थारु जनजाति अन्य राज्यों जैसे बिहार, उत्तरप्रदेश व नेपाल में महाकाली नदी के पश्चिमी तट पर निवास करती है.
इनके शरीरिक कद छोटा होता है तथा ये चौड़े मुख वाले मंगोंलों से इनकी बनावट मिलती है. कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान राजस्थान के थार मरुस्थल बताते हैं. वहीं ये खुद को महाराणप्रताप का वंशज समझते हैं. इस जनजाति के लोग होली पर खिचड़ी नृत्य करते हैं. वहीं इस जनजाति में बदला विवाह और लठभरवा भोज जैसी प्रथा भी प्रचलित हैं. इस जनजाति के लोग हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. वहीं देवताओं को स्वनिर्मित शराब चढ़ाने का भी प्रचलन है.
2. जौनसारी जनजाति
जौनसारी उत्तराखण्ड की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है जो मुख्य रुप से भाबर क्षेत्र व देहरादून के चकराता, कालसी, त्यूनी, लाखामंडल क्षेत्र, टिहरी का जौनपुर और उत्तरकाशी के परग नेकान क्षेत्र में निवास करते हैं. इनका संबंध इण्डो आर्यन परिवार से देखने को मिलता है. इनकी मुख्य भाषा जौनसारी है तथा कहीं कहीं देवघारी व हिमाचली भाषा भी बोली जाति है. यह जनजाति खसास, कारीगर और हरिजन खसास नामक तीन वर्गों में बाँटी गई है.
इस जनजाति की वेशभूषा में पुरुष झंगोली (ऊनी पजामा), डिगुबा (ऊनी टोपी) तथा स्त्री झगा (कुर्ती-कमीज) तथा चोल्टी (कुर्ते के बाहर चोली) पहनते हैं. इस जनजाति में बेवीकी, बोईदोदी की और बाजादिया आदि प्रकार के विवाह प्रचलित हैं. ये भी हिन्दू धर्म के उपासक हैं तथा हनौल इनका प्रमुख देवालय है. तीज त्यौहार के रुप में जौनसारी जनजाति के लोग बिस्सू (वैशाखी), पंचाई या पांचो (दशहरा), दियाई (दीपावली) माघत्यौहार, नुणाई, जागड़ा, अठोई (जन्माष्टमी) आदि विशिष्ट त्यौहार मनाते हैं. ये खुद को पाँडवों का वंशज बताते हैं तथा दीपावली के एक माह बाद इस त्यौहार को मनाते हैं. इस दिन ये भयलो (हौला) जलाकर खेलते हैं. महासू (महाशिव) इनके प्रमुख देवता हैं.
3. भोटिया जनजाति
भोटिया जनजाति एक अर्द्धघुमंतू जनजाति है. जो पूर्व में तिब्बत और चीन से व्यापार किया करती थी. इस जनजाति के लोगों को खस राजपूत कहते हैं. भोटिया जनजाति के लोगों को कश्मीर के लद्दाख में भोटा तथा हिमाचल जे किन्नौर में इन्हें भोट नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड में भोटिया जनजाति के लोग पिथौरागढ, चमोली तथा उत्तरकाशी जिले के 291 सीमावर्ती गांवों में निवास करते हैं. जिनमें अंगर, जादूंग व नेलंग उत्तरकाशी में, चमोली में माणा, मलारी, नीति व टोला तथा पिथौरागढ में डुंग, मिलम, तेडांग, मर्तोली, जोलिंग व कोंग कुटि आदि क्षेत्र प्रमुख हैं.
शारीरिक दृष्टि से ये तिब्बत व मंगोलियन जाति के मिश्रण हैं. यह प्रायः शीतकाल में नीचले आवासों पर आकर ठहरते हैं. इनका पारंपरिक परिधान में पुरुष रंगा (घुटने तक का कोट), गैजू या खगचसी (ऊनी पाजामा), चुंगुठी या चुकुल (टोपी) व बांखे (ऊनी जूता) पहनते हैं. वहीं स्त्रियाँ च्यूमाला (मैक्सीनुमा वस्त्र), च्यूंकला (टोपिनुमा वस्त्र), ज्यूख्य (कमर में बाँधने वाला वस्त्र), च्युब्ति, ज्यूज्य (कमर में लपेटने का वस्त्र) आदि पहनती हैं. ये प्रमुख रुप से हिन्दू देवताओं के उपासक हैं मगर कुछ बौद्ध की भी उपासना करते हैं. भोटिया जनजाति के लोग नंदादेवी, भूम्याल, ग्वाला, दुर्गा आदि की उपासना अपनी रक्षा के लिए करते हैं. वहीं इस जनजाति में प्रत्येक 12 वर्ष में कंडाली नामक पर्व भी मनाया जाता है.