अब डेटा तकरीबन मुफ्त है और ज़रूरी बात कम वक्त में करने की बाध्यता नहीं रही. पिछले एक दशक में मोबाइल फोन क्रांति भारत के सबसे तेज़ और अहम बदलावों में से एक रही है. 1990 के दशक से टेलिफोन बूम देश में आया था, जिसके जीते जागते सबूत थे एसटीडी पीसीओ बूथ.
करीब दो दशक की ज़िंदगी के बाद इनकी ज़रूरत अब खत्म हो चुकी है. गली-गली में मोबाइल सिम कार्ड की छोटी-छोटी दुकानों के दौर की याद रखने वाली जनरेशन अब सिम, रिचार्ज से लेकर तमाम सर्विसेज़ ऑनलाइन यूज़ कर रही है.
21वीं सदी में जन्मी जनरेशन के लिए भारत में एसटीडी बूथों की कहानी किसी इतिहास से कम नहीं है. भारत में वास्तव में टेलिकॉम की शुरूआत 19वीं सदी में होने लगी थी, लेकिन 20वीं सदी में कई पड़ावों के बाद बहुत तेज़ रफ्तार की क्रांति 21वीं सदी में देखी गई.
25 नवंबर 1960 को पहली बार एसटीडी सेवा शुरू हुई थी, जब कानपुर से लखनऊ के बीच इस सर्विस के तहत पहला कॉल लगाया गया था. इससे पहले ट्रंक कॉल की सेवा हुआ करती थी. पहले एसटीडी के बारे में जानिए और फिर इसके उठान और उतार की कहानी.
क्या था एसटीडी और एसटीडी बूथ?
सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग को संक्षेप में एसटीडी कहा जाता रहा. इसका मतलब यह है कि इसमें टेलिफोन यूज़र को बगैर ऑपरेटर की मदद के ट्रंक कॉल करने की सुविधा मिली. इससे पहले यूज़र पहले ऑपरेटर को फोन लगाता था और फिर किसी दूसरे व्यक्ति से बात कर पाता था. यह सर्विस भारत में बहुत बड़ी क्रांति थी क्योंकि इसके ज़रिये देश में किसी भी जगह फोन पर बात करना एकदम सीधा और आसान तरीका हो गया था.
इस सर्विस को अंजाम देने के लिए मेट्रो शहरों से लेकर गांवों तक को एक एसटीडी कोड अलॉट किया गया था. इस कोड के साथ फोन नंबर डायल किया जाता था. पूरा नंबर मिलाकर 10 अंकों का ही होता था, जिसमें एसटीडी कोड शामिल होता था. जैसे 011 दिल्ली का एसटीडी कोड है, तो इसके आगे 8 अंकों का टेलिफोन नंबर जोड़कर डायल करना होता है.
लैंडलाइन फोन से जब मोबाइल फोन की तरफ बदलाव हो रहा था, तब टेलिकॉम सेवाओं के सामने बड़ी चुनौती थी. मोबाइल फोन नंबरों को भी 10 अंकों का रखा गया, लेकिन इसमें भारत का आईएसडी कोड शामिल हुआ. यानी भारत के किसी मोबाइल नंबर का फॉर्मेट “+91 xxxx-nnnnnn” रहा, जिसमें +91 भारत का कोड है xxxx का मतलब ऑपरेटर के कोड से है और बाद के छह अंक सब्सक्राइबर के लिए यूनीक नंबर हैं.
एसटीडी बूथों का बूम
मोबाइल फोन क्रांति से पहले देश में करीब दो दशकों की एसटीडी बूथ क्रांति का समय था. 1990 के दशक से इसकी शुरूआत हुई थी और जगह जगह एसटीडी आईएसडी पीसीओ बूथ दिखा करते थे. यहां टेलिफोन डायरेक्टरी के साथ ही एसटीडी कोड्स की लिस्ट चस्पा होती थी और आप किसी भी जगह से किसी भी दूसरी जगह पर फोन लगा सकते थे.
साल 2000 के बाद मोबाइल फोन क्रांति शुरू होने लगी थी और यह वो समय था, जब ये अंदाज़े लगाए जा रहे थे अगले दशक में एसटीडी बूथ और लैंडलाइन या फिक्स्ड लाइन फोन का ज़माना खत्म हो जाएगा. मोबाइल फोन आ रहे थे तो सबके पास पर्सनल मोबाइल नहीं हुआ करते थे. उस वक्त भी ये बूथ काफी मददगार रहे.
एसटीडी बूथों के खात्मे का दौर
पहली बार साल 2009 में एसटीडी पीसीओ बूथों के ट्रेंड में उतार दर्ज हुआ था. देश में 50 लाख से ज़्यादा बूथों की संख्या अपने चरम तक पहुंच चुकी थी लेकिन 2008 के मुकाबले पहली बार 2009 में 4.6 लाख बूथों का कम होना देखा गया. अगले पांच से छह सालों में पीसीओ बूथ महज़ 10 फीसदी रह गए. 2015 में इनकी संख्या देश भर में सिर्फ 5.77 लाख रह गई थी.
साल 2010 के बाद से बहुत तेज़ी से एसटीडी पीसीओ बूथों का उतार शुरू हुआ तो पहले इन बूथों को जनरल स्टोरों या किराना स्टोरों या इंस्टेंट पैकेज्ड फूड कॉर्नरों के तौर पर विकसित होते हुए देखा गया. इसके बाद ये बूथ सीधे बंद होने लगे और इस व्यवसाय में लगे लोग दूसरे रोज़गार तलाशने लगे. कुछ मोबाइल फोन की सिम, चार्जिंग या अन्य सेवाओं में तब्दील होने लगे थे.
कुल मिलाकर, बहुत कम समय की एक क्रांति टेलिकॉम के इतिहास में दर्ज है और अभी ऐसे कई लोग भारत में नई जनरेशन के आसपास हैं जो इन बूथों और एसटीडी कॉल के गुज़रे दिनों के बारे में कई कहानियां सुना सकते हैं कि किस तरह एक एक सेकंड नाप तोलकर बात की जाती थी.
साभार-न्यूज़ 18