दिवाली के त्यौहार को लेकर सभी में जमकर उत्साह नजर आ रहा है. धनतेरस के दिन से दिवाली पर्व की शुरुआत हो जाती है जो कि पांचदिन तक चलती है. आखिरी दिन भैया दूज सेलिब्रेशन के साथ ही इसका समापन हो जाता है.
दिवाली महापर्व के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी पर्व जिसे रुप चौदस भी कहा जाता है सेलिब्रेट कियाजाता है. इस दिन ‘अभ्यंग स्नान करने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में अभ्यंग स्नान करने से नरक के भय से मुक्ति मिल जाती है.
यह भी मान्यता है कि अगर स्नान के बाद दक्षिण दिशा में हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना की जाए तो व्यक्ति द्वारा साल भर किए गए पापों का नाश हो जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यांग स्नान की परंपरा है लेकिन कई लोग इस बारे में नहीं जानते हैं.
अगर आप भी अब तक धार्मिक तौर पर काफी महत्व रखने वाले अभ्यंग स्नान के बारे में अनजान हैं तो हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं. नियमपूर्वक इस स्नान को करने से विशेष पुण्य लाभ प्राप्त होता है.
नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान करने को काफी फलदायी माना गया है. अभ्यंग स्नान में पूरे शरीर पर तेल की मालिश की जाती है. अभ्यंग दो शब्दों का मेल है अभ्य का अर्थ संपूर्ण (चारों तरफ) और अंग का मतलब शरीर.
अर्थात संपूर्ण शरीर के अंगों का स्नान.
नरक चुतर्दशी पर तिल के तेल या फिर सरसों के तेल से अभ्यंग स्नान किया जा सकता है. सूर्योदय के पहले अभ्यंग स्नान करने का विशेष महत्व है. यह स्नान ब्रह्म मुहूर्त में किया जाता है. ब्रहम मुहूर्त का समय 03: 24 मिनट से 04.24 मिनट माना गया है.