समय बड़ा बलवान होता है. राजनीति में सियासत करवटें लेती हैं. ‘सत्ता के इस खेल में अर्श से फर्श तक नेताओं को गुजारना पड़ता है’.
लगभग दो माह पहले राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट ने ‘मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सिंहासन हिला कर रख दिया था’. पायलट के बगावती तेवरों के कारण गहलोत को अपने विधायक, मंत्री व स्वयं को राजस्थान की राजधानी जयपुर छोड़कर जैसलमेर भागना पड़ा था .
सही मायने में ‘सचिन पायलट लगभग एक माह तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपनी मुट्ठी में लेकर राजधानी दिल्ली (हरियाणा) में भाजपा गलियारों में चक्कर लगा रहे थे’. यही नहीं पायलट ने गहलोत की सरकार को गिराने के लिए दिल्ली से अपने सभी सियासी दांव लगा दिए थे .
‘आखिरकार गहलोत का दांव पायलट पर भारी पड़ गया’. इस बीच सीएम अशोक गहलोत ने पायलट को उप मुख्यमंत्री पद से भी बर्खास्त कर दिया. पायलट के समर्थक कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को भी बर्खास्त किया गया था . थक हार कर पायलट दिल्ली से ‘हारे हुए सिपाही की तरह जयपुर लौट आए’ .
अब सचिन पायलट एक कांग्रेसी विधायक के तौर पर अपनी सियासत को आगे बढ़ा रहे हैं. सोमवार से एक बार फिर ‘मुख्यमंत्री गहलोत और पायलट के बीच सरकारी बंगले को लेकर सियासत जारी हैै’.
नियम यह है कि किसी मंत्री (कैबिनेट हो या राज्य मंत्री) को पद से हटाया जाता है तब उसे दो माह के अंदर सरकारी बंगला खाली करना होता है. सचिन पायलट को भी सरकारी बंगला खाली करने की 14 सितंबर को मियाद पूरी हो चुकी है.
क्योंकि इन तीनों को गहलोत सरकार ने मंत्री पद से 14 जुलाई को बर्खास्त किया था. अगर सचिन पायलट बंगला नहीं खाली करते हैं तो उन्हें हर दिन दस हजार जुर्माने के तौर पर देना होगा.
दूसरी ओर राज्य का सामान्य प्रशासन विभाग मंत्री की हैसियत से मिले सरकारी आवास को खाली करवाने के लिए तीनों पूर्व मंत्रियों को नोटिस देने की तैयारी करने में जुटा हुआ है.
गहलोत गुट के विधायक पायलट से बंगला खाली कराने के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव बनाए हुए हैं. दूसरी ओर अगर सीएम गहलोत सचिन पायलट से बंगला खाली कराते हैं तो सचिन पायलट की कांग्रेस पार्टी में एक फिर किरकिरी होगी.
पायलट से बंगला खाली कराने को लेकर फिलहाल गहलोत पशोपेश में
पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा से सरकारी बंगला खाली कराने को लेकर प्रदेश में सियासत जोरों पर है. हालांकि एक दिन बीत जाने के बाद अभी तक सीएम गहलोत ने इस पर फैसला नहीं लिया है.
यहां हम आपको बता दें कि ये तीनों अब सिर्फ विधायक हैं और विधानसभा के विधायक आवासों में ही रह सकते हैं. तीनों को 14 जुलाई को बर्खास्त किया गया था.
नियमानुसार अब वे सामान्य प्रशासन विभाग के बंगलों में नहीं रह सकते क्योंकि ये बंगले सिर्फ मंत्रियों के लिए ही आवंटित किए जाते हैं. क्या गहलोत सरकार किरोड़ी मीणा व जगन्नाथ पहाड़िया की तरह इन तीनों से बंगला खाली करवाएगी या ‘पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तरह राहत देगी’.
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऐसे ही मामले में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को राहत देने के लिए उनके बंगले समेत ‘चार बंगलों को सामान्य प्रशासन विभाग से विधानसभा के पूल में डाल दिया था’.
इसलिए इन तीनों पूर्व मंत्रियों से सरकारी बंगला खाली करानेे की नौबत आई है, बता दें कि राजस्थान में विधायकों की खरीद फरोख्त की कथित साजिश के एसओजी का नोटिस मिलने से नाराज तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपने खेमे के करीब बीस विधायकों को साथ लेकर हरियाणा के एक होटल में डेरा डाल लिया था. इधर अशोक गहलोत सरकार सियासी भंवर में फंस गई थी.
राजस्थान सरकार अगर वसुंधरा वाला नियम अपनाती है तभी पायलट बंगला बचा पाएंगे !
अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे वाला नियम लागू करती है तभी सचिन पायलट, विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा अपना सरकारी बंगला बचा पाएंगे. आपको बता दें कि राजस्थान सरकार की ‘नई व्यवस्था क्या है’ .
विधानसभा पूल से ये बंगले उन नेताओं को आवंटित हो सकेंगे जो पूर्व सीएम, केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे या राज्य मंत्री और तीन बार विधानसभा के सदस्य रहे या फिर राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री और दो बार विधानसभा सदस्य रहे या फिर दो बार सांसद रहे.
राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगले खाली करवाने का आदेश दिया था. इसमें वसुंधरा राजे का सरकारी बंगला भी शामिल था.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद गहलोत सरकार ने वसुंधरा से बंगला खाली नहीं करवाया था . हालांकि जिन नियमों के तहत वसुंधरा राजे को ‘विधानसभा पूल’ में बंगला दिया गया है उनमें पायलट व विश्वेंद्र सिंह भी आते हैं.
पायलट केंद्र में मंत्री, सांसद, कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं व मौजूदा विधायक भी हैं. विश्वेंद्र सिंह भी 3 बार सांसद, 6 बार विधाायक व कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और माैजूदा विधायक भी हैं. लेकिन रमेश मीणा सिर्फ कैबिनेट मंत्री रहे हैं और विधायक हैं.
इसलिए वे विधानसभा पूल के नियमों में भी नहीं आते. हालांकि विधानसभा पूल में बंगला शामिल करने के लिए भी मीणा को सरकार के सामने आवेदन करना होगा. माना जा रहा है कि आवास खाली कराने के मामले को लेकर प्रदेश की राजनीति में एक और नया मोड़ आ गया है.
ऐसे में देखना होगा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन तीनों पूर्व मंत्रियों से सरकारी आवास खाली कराते हैं या वसुंधरा वाला नियम अपनाते हैं, सही मायने में अब पूरी बाजी गहलोत के हाथ में है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार