सोमवार को केरल हाईकोर्ट ने उस याचिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया जिसमें कोविड-19 वैक्सीन प्रमाणपत्रों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के इस्तेमाल को चुनौती दी गई थी.
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ लीडरशिप में काम करने वाले याचिकाकर्ता से पूछा कि कोविड-19 वैक्सीन प्रमाणपत्रों पर पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल पूर्व पीएम नेहरू के नाम पर एक विश्वविद्यालय का नाम रखे जाने से कैसे अलग है.
जज ने कहा, ‘वह (नरेंद्र मोदी) हमारे प्रधानमंत्री हैं, किसी और देश के नहीं. वह जनादेश से सत्ता में आए हैं. केवल इसलिए कि आपके राजनीतिक मतभेद हैं, आप इसे चुनौती नहीं दे सकते. हमारे पीएम को लेकर आपको शर्म क्यों आती है? (अगर) 100 करोड़ लोगों को इससे कोई दिक्कत नहीं है, तो आपको क्यों? आप अदालत का समय बर्बाद कर रहे हैं.”
याचिकाकर्ता पीटर म्यालपराम्भिल ने अक्टूबर में यह तर्क देते हुए अदालत का रुख किया था कि कोविड-19 वैक्सीन प्रमाणपत्रों पर प्रधानमंत्री की तस्वीर का उपयोग करने की “कोई उपयोगिता या प्रासंगिकता नहीं है”. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील अजीत एम जॉय ने तर्क दिया कि वैक्सीन प्रमाणपत्र उनका निजी स्थान है और इस पर उनके कुछ अधिकार हैं.
उन्होंने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने वैक्सीन के लिए भुगतान किया था, इसलिए राज्य इसका श्रेय नहीं ले सकता. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
वकील ने दलील दी कि अगर सरकार वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो का इस्तेमाल करने पर जोर देती है तो पीएम की तस्वीर के बिना सर्टिफिकेट जारी करने का भी विकल्प होना चाहिए.
वकील ने बताया कि कई अन्य देशों में टीकाकरण प्रमाणपत्रों में सरकार के मुखिया (राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री) के चित्र नहीं होते हैं. इसके जवाब में जज ने कहा, “उन्हें अपने पीएम पर गर्व नहीं हो सकता है, लेकिन हमे है. वह (नरेंद्र मोदी) लोगों के जनादेश के कारण पीएम बने. हमारी अलग-अलग राजनीतिक राय हो सकती है, लेकिन फिर भी वह हमारे पीएम हैं.”
केंद्र सरकार के वकील ने पीएम की तस्वीर के इस्तेमाल का बचाव करते हुए कहा कि मोदी की छवि के साथ-साथ वैक्सीन प्रमाणपत्र पर उनके शब्दों से कोरोना वायरस बीमारी के खिलाफ टीकाकरण अभियान के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद मिलेगी.