कामदा एकादशी व्रत चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं. इस बार यह 23 अप्रैल 2021 को पड़ रही है. यानि शुक्र बार को हिन्दू पंचाग के अनुसार एकादशी तिथि का आरम्भ हालांकि 22 अप्रैल 2021 गुरु बार देर रात 11 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है और समापन 23 अप्रैल 2021 शुक्रवार रात्रि बजकर 45 मिनट पर हो रहा है.
चूंकि उदयातिथि 23 अप्रैल होने की वजह से एकादशी व्रत 23 अप्रैल को ही रखा जायेगा. और पारण 24 अप्रैल को प्रातः 5 बजकर 47 मिन से 8 बजकर 24 मिनट के बीच होगा. भक्तों एवं पाठक बन्धुओ को बताना चाहता हूँ कि कामदा एकादशी व्रत करने से क्रोध. काम लोभ मोह जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है. और पाप नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत कथा को पढने से एवं सुनने से भी कयेक पाप नष्ट हो जातें हैं.
व्रत कथा इस प्रकार है
प्राचीन काल में भोगीपुर नामक एक नगर था. वहाँ पर अनेक ऐश्वरयों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था.
भोगीपुर नगर में अनेक अप्सराएँ किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे. उनमें से एक जगह ललित और ललिता नामक दम्पति अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों में अत्यंत स्नेह था. यहाँ तक कि वो अलग अलग हो जाने पर व्याकुल हो जाते थे. एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था. गाते हुए उसे अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गयाथा और उसका स्वर बिगड़ गया ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया.
तब पुण्डरीक ने क्रोध पूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहाहै. अत तू कच्चा मांशाहार और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बन कर अपने किये कर्मों का फल भोग. पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया. उसका मुख अत्यंत भयंकर नेत्र सूर्य चन्द्र की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी. उसकी नाक पर्वत की कंदराओं के समान और सिर के बाल पर्वत पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे. उसका शरीर आठ योजन विस्तार में हो गया.
इस प्रकार वह राक्षस होकर अनेक प्रकार के दुख भोगने लगा जब उसकी प्रिय तमा ललिता को यह वृतान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत दुख हुआ वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी वह राक्षस अनेक प्रकार के दुख सहते हुए घने जंगलों में रहने लगा उसकी स्त्री अपने पति के पीछे घूमते हुए विन्ध्याचल पर्वत पर पंहुच गयी. जहाँ पर श्रंगिऋषी का आश्रम था. ललिता शीघ्र ही श्रंगिऋषी के आश्रम में आ गयी और वहाँ जाकर विनित भाव से प्रार्थना करने लगी उसे देख कर श्रंगिऋषी बोले कि हे सुभाष तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आई हो.
ललिता बोली कि हे मुनि मेरा नाम ललिता है. मेरे पति राजा पुण्डरीक के श्राप से राक्षस बन गया है. उसका मुझे महान दुख है. इसके उद्धार का कोई उपाय बताऐ. ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या अब चैत्र शुक्ल एकादशी व्रत आने वाला है जिसका नाम कामदा एकादशी व्रत है. इसका व्रत करने से पुण्य का फल अपने पति को देदेना वह शीघ्र राक्षस योनि से मुक्त हो जायेगा. और राजा का श्राप भी अवश्य शांत होगा.
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर व्रत किया और द्वादशी को व्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुवी भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी कि हे भगवान मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पति को प्राप्त हो वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाये. एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ.
उसके पश्चात वे दोनों विमान में वैठकर स्वर्ग लोक चले गये. मुनि कहने लगे कि हे राजन इस व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. तथा राक्षस आदि योनि छूट जाती है. संसार में इसके बराबर व्रत नहीं है. इसकी कथा पढने व सुनने से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल