चैत्र नवरात्रि या वासन्तिक नवरात्र का आरम्भ 13 अप्रैल से हो रहे हैं और 21 अप्रैल तक चलेंगे. नवरात्रों का यह त्योहार हमारे भारतवर्ष में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसका जिक्र पुराणों में भी अच्छे से मिलता है.
वैसे तो पुराणों में एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्रों का जिक्र किया गया है, लेकिन चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों को ही प्रमुखता से मनाया जाता है.
बाकी दो नवरात्रों को तंत्र-मंत्र की साधना हेतु करने का विधान है. इसलिए इनका आम लोगों के जीवन में कोई महत्व नहीं है. महाशक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा की संज्ञा दी गई है.
कलश स्थापना मुहूर्त-:
अभिजित मुहूर्त :- सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक
मेष लग्न (चर लग्न) :- सुबह 6 बजकर 02 मिनट से 7 बजकर 38 मिनट तक
वृषभ लग्न (स्थिर लग्न) :- सुबह 7 बजकर 38 मिनट से 9 बजकर 34 मिनट तक
सिंह लग्न (स्थिर लग्न) :- दोपहर 2 बजकर 7 मिनट से 4 बजकर 25 मिनट तक
उत्तर-पूर्व कोने में जल छिड़क कर साफ मिट्टी या बालू रखनी चाहिए. उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए. उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की साफ परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए. जलावशोषण यानि उसके ऊपर जल छिड़कना चाहिए.
फिर उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए और अब कलश को गले तक साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए.
अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल जरूर मिलाना चाहिए. इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र का जप करना चाहिए. मंत्र है