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जैश-ए-मुहम्मद ने पाक पीएम से जिहादी समूहों से बैन हटाने को कहा

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मसूद अजहर

जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेनाओं को निशाना बनाने वाले अभियानों को लंबे समय से चल रहे तालाबंदी का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि इस बीच जैश-ए-मुहम्मद ने अपनी पत्रिकाओं और डिजिटल प्लेटफार्मों में कई लेख प्रकाशित किए हैं, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार से जिहादी समूहों पर प्रतिबंध हटाने और उन्हें सक्षम करने का आह्वान किया गया है. जैश-ए-मुहम्मद ने इस क्षेत्र के अलगाववादी आंदोलन के समर्थन में नियंत्रण रेखा के पार अभियान चलाने की बात की है.

जैश-ए-मुहम्मद की घरेलू ​पत्रिका अल-कलम पत्रिका के 4 सितंबर के अंक में एक उसकी एक कविता प्रकाशित हुई है जिसमें कविता पाकिस्तान सरकार से गुजारिश करती है कि ‘गलती से भी दुश्मन से बात ना करें’. इस कविता में यह भी कहा गया है कि “सत्ता में बैठे उपदेशकों से सत्ता की भाषा में बात करें.

जैश-ए-मुहम्मद पुलवामा में आतंकवादी घटना को अंजाम देने के बाद से कुछ छोटे पैमाने पर अपनी गतिविधियां संचालित करने में सफल रहा है. जैश-ए-मुहम्मद ने बीते जून महीने में एक घृणित कार-बम हमले का प्रयास किया. इस दुघर्टना में सेना के जवानों के साथ दूसरे लोग भी जख्मी हुए. इस घटना में बेहतरीन विस्फोटक ​बनाने वाले आतंकवादी अब्दुल रहमान की मौत पुलिस के साथ मुठभेड़ में हो गई थी.

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 17 आतंकवादियों को या तो पाकिस्तानी के रूप में या विदेशी नागरिकों के तौर पर पहचाना गया. इन सभी को 31 अगस्त तक कश्मीर में सेना या पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान मार गिराया. 33 आतंकवादियों को वर्ष 2019 में और 2018 में 64 आतंकवादियों को मार गिराया गया था. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष नियंत्रण रेखा के पास घुसपैठ में कमी आई है.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि कश्मीर में 2020 तक मारे गए सभी आतंकवादियों में से 40 प्रतिशत केवल स्वचालित पिस्तौल से लैस थे और कुछ मामलों में उनके पास कोई हथियार नहीं था. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “कश्मीर में जिहादी आंदोलन स्पष्ट रूप से हथियार से लेकर प्रशिक्षण तक संसाधनों के गंभीर संकट का सामना कर रहा है.”

पाकिस्तान में जिहादी गुटों के प्रमुख अधिकारी, पाकिस्तानी विद्वान आयशा सिद्दीका का कहना है कि कश्मीर पर प्रधानमंत्री खान की सरकार के शब्दों में जिहादियों को एकजुट करने की इच्छा के कारण बहुत सारे कारण मौजूद हैं. आयशा का कहना है कि सऊदी अरब ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह कश्मीर पर संकट की संभावना से उत्साहित नहीं है. यह वित्तीय कार्य टास्क फोर्स से प्रतिबंधों का खतरा है, युद्ध का खतरा है.

साभार न्यूज़ 18

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