कांग्रेस मुक्त विपक्ष! क्या आप और टीएमसी ने बदल दिया देश सबसे पुरानी पार्टी का गेम

राज्य सभा के 12 सांसदों के निलंबन को लेकर कांग्रेस ने जो पत्र जारी किया है, वह पार्टी के अंदर के असमंजस को दर्शाता है. जहां इसमें 12 सांसदों के निलंबन को लेकर विरोध दर्ज किया गया है. इसमें टीएमसी के सदस्य के नाम शामिल हैं.

वहीं, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी की तरफ से किसी का कोई हस्ताक्षर इसमें मौजूद नहीं है. यह तो साफ है कि कांग्रेस, टीएमसी के लिए समर्थन को सार्वजनिक करने से बचना चाहती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अकेले जाना चाहती है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि टीएमसी, कांग्रेस को लगातार विपक्ष के स्थान से सरका रही है.

टीएमसी की भाजपा से अकेले मुकाबला करने की योजना है. उसकी इस योजना का कांग्रेस हिस्सा नहीं है. उधर कांग्रेस के बर्ताव से ऐसा लग रहा है जैसे वो भी धीरे-धीरे विपक्ष के किरदार से बाहर निकलने की अभ्यस्त होती जा रही है. संसद के पहले दिन विपक्षी दलों की बैठक में टीएमसी ने आने से इनकार कर दिया.

शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) के महाराष्ट्र में गठबंधन के बावजूद उनका भी इस बैठक में शामिल नहीं होना तनाव का मामला लगा. हालांकि सेना ने अपनी पूर्व व्यस्तताओं की बात करके बात शांत करने की सोची, इधर कांग्रेस अब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और ममता बनर्जी के साथ बैठक करने के बारे में विचार कर रही है.

कांग्रेस खुद को ऐसी स्थिति में देख रही है जहां उसे यह समझ नहीं आ रहा है कि अब उसे अगला समर्थन कहां से हासिल होगा, उस पर पार्टी में चल रही खींचतान से कैसे निपटा जाए यह भी उनके लिए एक अहम सवाल है.

मल्लिकार्जुन खड़गे उन लोगों में से हैं जिन्हें लगता है कि यह वक्त टीएमसी पर हमला करने के लिए सही नहीं है, इस दौरान कांग्रेस को संयमित बर्ताव करना चाहिए. उनका कहना है कि हमारा लक्ष्य बड़ा है और वो भाजपा को मात देना है, इसके लिए हमें साथ मिलकर लड़ाई लड़नी होगी.

लेकिन कुछ वरिष्ठ नेता जैसे केसी वेणुगोपाल और अधीर रंजन चौधरी को लगता है कि तृणमूल कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है. वे इस बात को लेकर भी नाराज हैं कि अभिषेक बनर्जी ने राहुल गांधी पर भी खुलकर ज़बानी हमला बोला है.

पार्टी को अब लगने लगा है कि टीएमसी एक भूखे शेर की तरह है जो बस कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है और उसकी जगह को निगल रही है. इसलिए उन्होंने टीएमसी को भाजपा की बी टीम बोलना शुरू कर दिया था. वहीं टीएमसी ने पलटवार करते हुए कहा कि हमने खुद को बंगाल चुनाव में साबित किया है. कांग्रेस की कमजोर प्रतिक्रिया बताती है कि वह किसी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहती है और उनके सारे पत्ते फेल हो चुके हैं.

वैसे कांग्रेस इस बड़ी योजना से भलीभांति वाकिफ है कि आप और टीएमसी की महत्वाकांक्षा के चलते उनके पास काफी कम जगह बची है. आप पंजाब में कांग्रेस को हराने के लिए जी जान से जुटी हुई है. उत्तराखंड में भी आप चाहेगी कि उसे कांग्रेस की जगह मिल जाए. वह उसे ऐसे राज्य से बाहर निकालना चाहती है जहां उसकी जीत की थोड़ी बहुत उम्मीद है.

प्रशांत किशोर की कर्नाटक के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की खबर ने कांग्रेस की रीढ और झुका दी है. अब उनका सबसे बड़ा डर यही है कि टीएमसी और आप उन्हें आगे नहीं बढ़ने देंगी. ऐसे में कांग्रेस का गेम प्लान क्या होगा. सबसे पहले वह विपक्षी दल जैसे एनसीपी, शिवसेना और डीएमके के साथ अपने मैत्री गठबंधन को सुनिश्चित करना चाहेगी.

उसे उम्मीद है कि आप और टीएमसी से बचने के लिए यह गठबंधन उनके लिए कवच का काम करेगा. इसके अलावा अब कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में सड़क पर उतरने की योजना बना रही है. संसद में भी कांग्रेस जोरदार और उदार छवि बनाना चाहती है.

जिससे वो अपने साथियों के दिल में जगह बना सके और यह समझा सके कि टीएमसी ऐसा दल है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस को उम्मीद है इस तरह से वह कांग्रेस मुक्त भारत और कांग्रेस मुक्त विपक्ष दोनों ही बातों के लिए कुछ दमदार नीति बना सकेगी.

साभार-न्यूज 18

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