मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि तिरंगे और अशोक चक्र की डिज़ाइन वाले केक काटना ना तो असंगत है और ना ही राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971 के तहत राष्ट्रीय ध्वज का अपमान। अदालत डी सेंथिलकुमार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इस तरह का केक काटना अपराध है।
उन्होंने याचिका में आरोप लगाया था कि राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971 की धारा 2 के तहत यह अपराध है। उन्होंने भारत के संविधान में 3 साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान होने की बात कही थी।
सेंथिलकुमार ने वर्ष 2013 में क्रिसमस के मौके पर तिरंगे वाले 6×5 फीट के केक काटने और 2,500 से अधिक मेहमानों के बीच इसके विचरण के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इस कार्यक्रम में कोयम्बटूर के जिला कलेक्टर, पुलिस उपायुक्त और विभिन्न अन्य धार्मिक नेताओं और गैर सरकारी संगठनों के सदस्योंने भी हिस्सा लिया था।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने सोमवार को अपने फैसले में आपराधिक कार्यवाही को खत्म करते हुए कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत जैसे लोकतंत्र में राष्ट्रवाद बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन, उग्र और मतलब से ज्यादा पालन करना हमारे देश की समृद्धि को उसके अतीत के गौरव से दूर कर देता है
एक देशभक्त सिर्फ वही नहीं है जो केवल ध्वज, जो कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है, उठाता है, इसे अपनी आस्तीन पर पहनता है। राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक देशभक्ति का पर्यायवाची नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे केक काटना कोई असंगत नहीं है।”
अदालत ने राष्ट्रवाद पर अपनी बात पर जोर देने के लिए टैगोर का भी हवाला दिया: “देशभक्ति हमारा अंतिम आध्यात्मिक आश्रय नहीं हो सकती; मेरी शरण मानवता है। मैं हीरे की कीमत के लिए ग्लास नहीं खरीदूंगा और मैं कभी भी मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।”