कमजोर होती कांग्रेस को फिर से रिवाइव करने के लिए लगता है आलाकमान अब अंदरूनी झगड़ों को खत्म करने के मूड में आ गया है. इसका बड़ा संकेत बुधवार देर रात कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बनाई गई कमेटी से मिलता है.
सोनिया गांधी ने देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश भर में पार्टी द्वारा किए जाने वाले समारोह और दूसरी अहम गतिविधियों के लिए बनाई कमेटी की अध्यक्षता पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी है.
इसके अलावा कमेटी में अंबिका सोनी, ए.के.एंटनी,मीरा कुमार, प्रमोद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं को जगह दी गई है. यही नहीं पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाने वाले 3 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को भी कमेटी में शामिल किया गया है.
G-23 के 3 नेताओं को जगह
11 सदस्यीय कमेटी में चौंकाने वाले 3 नाम शामिल हैं. इसके तहत जहां मुकुल वासनिक को कमेटी का समन्वयक बनाया गया है. वहीं राज्य सभा में विपक्ष के नेता और जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री गुलाम नबी आजाद और हरियाणा के पूर्व मुख्य मंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी जगह दी गई है.
खास बात यह है कि ये तीनों नेता, उन 23 वरिष्ठ नेताओं के समूह में शामिल थे जिन्होंने अगस्त 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखकर कांग्रेस में बड़े बदलाव की मांग की थी. और उसके बाद से कपिल सिब्बल के नेतृत्व में ये धड़ा कई बार खुलकर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाता रहा है. ऐसे में लगता है कि करीब एक साल बाद पार्टी नेतृत्व अब नए समीकरण बनाने में लग लग गया है.
इस बदलाव पर कांग्रेस के एक नेता का कहना है “देखिए ये लोग कोई कांग्रेस से बाहर नहीं है. पार्टी उनके अनुभव का फायदा उठाना चाहती है तो इसमें गलत क्या है? G-3 गुट आदि मीडिया की बनाई हुई बातें है, कोई नाराजगी नहीं है. आने वाले दिनों में और भी जिम्मेदारियां मिलेगी. “
सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनावों को देखते हुए पार्टी आने वाले दिनों में G-23 के दूसरे नेताओं को भी अहम जिम्मेदारी दे सकती है. हालांकि ऐसे नेता जो मीडिया में काफी मुखर हैं और सार्वजनिक रुप से बहुत कुछ कहते रहते हैं, उनसे दूरी बनाई जा सकती है. एक नेता कपिल सिब्बल की भूमिका पर सवाल पूछने पर कहते हैं “वह वकील आदमी है, बोलते रहते हैं, कभी कोर्ट में तो कभी कहीं और.
” जाहिर है कपिल सिब्बल जैसे नेताओं से पार्टी दूरी बनाकर ही रखेगी. उन्होंने अभी हाल ही में असम की कांग्रेस नेता सुष्मिता देव के पार्टी छोड़ने पर ट्वीट किया था “पार्टी युवा छोड़ते हैं और जिम्मेदार हम बूढ़ों को ठहराया जाता है. ” इसी तरह पंजाब में सिद्धू के ईंट से ईंट बजाने के बयान पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ट्वीट कर कहा था “हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती” . ऐसे में पार्टी इन नेताओं को क्या जिम्मेदारी सौंपती है, यह देखना अहम होगा.
अंदरूनी कलह से परेशान है कांग्रेस
लगातार हार से कांग्रेस का न केवल कई नेताओं ने साथ छोड़ दिया है, बल्कि पार्टी के अंदर भी कलह जारी है. मसलन पंजाब में चुनाव होने में केवल 6 महीने बचे हैं, उसके बावजूद मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.
पार्टी वहां पर दो गुटों में बंटी हुई है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव में मुख्य मंत्री की कुर्सी को लेकर लड़ाई चल रही है.
ऐसा ही हाल राजस्थान में मुख्य मंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सत्ता संघर्ष चल रहा है. इन हालातों को देखते हुए पार्टी की कोशिश है कि वह अब अंदरूनी कलह को खत्म हो . क्योंकि पार्टी 2024 के लिए भी कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का गठबंधन बनाना चाहती है.
जिससे भाजपा को लोक सभा चुनाव में टक्कर दी सके. खैर 2024 से पहले पांच राज्यों के चुनाव पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.
साभार- टाइम्स नाउ