पड़ोसी देश मालदीव को भारत द्वारा आर्थिक मदद दिए जाने से चीन चिढ़ गया है.
चीन का कहना कि भारत की इस मदद को क्षेत्र की भू-राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.
इस लोन के बाद मालदीव को अपने साथ जोड़कर देखना नई दिल्ली की यह ‘खराब योजना’ है.
चीन के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि मालदीव एक एक स्वतंत्र देश है और पैसे के बदले किसी देश की भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव करने की योजना रखना सही नहीं है.
एक सम्प्रभु देश को सभी देशों के साथ पारस्परिक एवं मित्रतापूर्ण सहयोग विकसित करने का अधिकार होता है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कुछ विदेशी मीडिया में भारतीय मदद को भू-राजनीति में बदलाव के तौर पर देखा गया है लेकिन मालदीव को इस ‘खेल’ में नहीं पड़ना चाहिए.
समाचार पत्र ने आगे कहा है, ‘कोविड-19 संकट की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को आर्थिक मदद की जरूरत है.
काफी सोच विचारकर उठाए गए नई दिल्ली के कदम यदि अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं उसे काफी निराशा होगी.’
पत्र ने आगे लिखा है कि ऐसा समझा जाता है कि मालदीव के विकास कार्यों के लिए और उसकी अर्थव्यवस्था को कोरोना के संकट से उबारने के लिए के लिए भारत ने उसे लोन दिया है.
लेकिन इसे चीन की आर्थिक मदद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के बारे में नहीं देखना चाहिए.
मुख पत्र का कहना है कि मालदीव को एक कामर्शियल लोन देने की एक प्रक्रिया चीन में चल रही है.
मालदीव को दिए गए इस आर्थिक मदद की जानकारी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक ट्वीट में दी.
उन्होंने कहा, ‘करीबी दोस्त और पड़ोसी भारत और मालदीव कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव एवं स्वास्थ्य संकट के खिलाफ लड़ाई में एक-दूसरे का सहयोग करना जारी रखेंगे.’
पीएम मोदी के संदेश से पहले मालदीव के राष्ट्रपति ने भारत सरकार के प्रति आभार जताते हुए कहा कि मालदीव को जब कभी भी दोस्त की जरूरत पड़ी है तो नई दिल्ली हमेशा मदद के लिए आगे आई है.
उन्होंने कहा, ‘आर्थिक सहायता के रूप में 25 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की जनता के प्रति आभार जताता हूं.’
कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत ने मालदीव को यह कर्ज 10 वर्षों के लिए दिया है.