पिथौरागढ़| उत्तराखंड के सियासी गलियारों में इनदिनों पूर्व सीएम हरीश रावत की पहाड़ वापसी की चर्चाएं तेज हैं. रावत लम्बे समय से मैदानी इलाकों में सियासी पारी खेल रहे हैं. लेकिन 2022 का चुनावी रण करीब आने के साथ ही उनकी वापसी की आहट ने प्रदेश का सियासी पारा भी चढ़ा दिया है.
पूर्व सीएम हरीश रावत की पहचान भले ही एक ठेठ पहाड़ी नेता की हो. बावजूद इसके रावत ने बीते 21 सालों में पहाड़ से सिर्फ धारचूला विधानसभा का उपचुनाव ही लड़ा है. रावत 1999 में अंतिम बार पहाड़ के लोकसभा क्षेत्र अल्मोड़ा से चुनावी अखाड़े में उतरे थे. इसके बाद हुए आम चुनावों में पूर्व सीएम हरिद्वार और नैनीताल सीट पर ही नजर आए. यहां तक की बीते विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने पहाड़ के बजाय मैदानी सीटों पर ही भरोसा जताया.
हरीश रावत की पहाड़ चढ़ने की अटकलों के बीच भाजपा भी हमलावर हुई है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी कहते हैं कि उन्हें पहाड़ का नेता तभी माना जा सकता है, जब वो अपने पैतृक गांव मोहनारी में स्थाई रूप से निवास करें.
रावत लम्बे अर्से से मैदानी इलाकों में भले ही सियासी पारी तो खेल रहे हो लेकिन खुद को पर्वत पुत्र साबित करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है. पहाड़ के काफल से लेकर ककड़ी तक की पार्टियों का वे अक्सर आयोजन करते आ रहे हैं. यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्रों का दौरा करने में भी वे नम्बर वन राजनेता साबित हुए हैं. यही नहीं पैतृक गांव मोहनारी भी पूर्व सीएम अक्सर नजर आ ही जाते हैं.
पहाड़ वापसी के सवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री रावत कहते हैं कि वापसी उसकी होती है, जो सबकुछ छोड़कर जा चुका हो. लेकिन वो तो अधिकतर समय पहाड़ों में ही गुजारते हैं. यहां तक कि पैतृक गांव भी अक्सर जाते हैं.
बीते विधानसभा चुनावों में हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से चुनावी अखाड़े में कूदे थे. लेकिन दोनों सीटों पर उन्हें करारी हार मिली थी. तभी से ये सम्भावना जताई जा रही है कि कुछ भी हो जाए रावत विधानसभा चुनावों में तो अब शायद ही मैदान का रूख करेंगे. ऐसे में अगर पूर्व सीएम पहाड़ वापसी करते हैं तो तय है कि पहाड़ के राजनीतिक समीकरण भी काफी हद तक बदलेंगे.
साभार -न्यूज़ 18