उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से प्राकृतिक आपदाओं के प्रदेश के तौर पर उभरकर आया है. आपदा में अगर मौतों के आंकड़े देखे जाएं तो इस साल यानी 2021 में अब तक उत्तराखंड में 298 लोग जान गंवा चुके हैं और 66 लापता हैं.
प्राकृतिक आपदाओं में जानें जाने का यह रिकॉर्ड देखा जाए तो 2013 में केदारनाथ के जलप्रलय में हज़ारों की जान गई थी, उसके बाद से इस साल का आंकड़ा सबसे ज़्यादा और भयावह है.
स्टेट ऑपरेशन इमरजेंसी सेंटर ने हाल में जो डेटा जारी किया, उसके मुताबिक इस साल उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं में करीब 300 लोगों की मौत हुई, 66 लापता हुए और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए.
इन आपदाओं में बाढ़, बादल फटने, हिमस्खलन, भूस्खलन और अतिवृष्टि से बने हालात शामिल हैं. बता दें कि आपदाओं को लेकर उत्तराखंड में कई तरह के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ अध्ययन किए जा रहे हैं.
साल 2010 से आंकड़े देखे जाएं तो 2013 के बाद 2021 में सबसे ज़्यादा मौतें हुईं. इसका मतलब क्या ये है कि 2010 से पहले और भी ज़्यादा मौतें हुई थीं? नहीं, वास्तव में, उत्तराखंड में आपदाओं का इतिहास पुराना रहा है, लेकिन 2010 से ही डेटा जुटाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ था.
2010 में 220 लोग आपदा में मारे गए थे, यह जानकारी देते हुए एक अधिकारी का कहना रहा, ‘पहले भी डेटा रखा जाता था, लेकिन 2010 में आई बाढ़ के बाद आपदा प्रबंधन सिस्टम की पोल खुली तो उसे मज़बूत किया गया और डेटा जुटाने की तरफ तवज्जो बेहतर हुई.’
गौरतलब बात यह भी है कि क्लाइमेट चेंज पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय पैनल के छठवें आंकलन में यह बात साफ तौर पर कही जा चुकी है कि भारत में आने वाले दशकों में और भारी बारिश होने के आसार हैं.
इधर, बीते 17 अक्टूबर से हुई अतिवृष्टि के बाद आई कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि उत्तराखंड में जो बेतरतीब और अवैज्ञानिक ढंग से विकास हो रहा है, उसके कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ा है.
साभार-न्यूज़ 18