हाईकोर्ट सख्त: आम लोगों के लिए मास्क-सोशल डिस्टेंसिंग के नियम बनाए और नेताओं ने स्वयं धज्जियां उड़ाई

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान पिछले एक महीने से विभिन्न राजनीतिक दलों की सैकड़ों चुनावी जनसभाएं हुईं हैं लेकिन किसी भी दल के नेता ने मंच से रैली में मौजूद जनता को मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का शायद ही संदेश दिया होगा.

कोरोना संकटकाल में जब नेता ही स्वयं बिना मास्क लगाकर रैली कर रहे हैं तो इसका आम लोगों पर इसका गलत संदेश जाता है. (हालांकि उनकी मजबूरी भी है, मास्क लगाकर तेज आवाज में बोलना संभव भी नहीं होगा) ‘आश्चर्य तब होता है कि राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी के प्रति केंद्र सरकार देशवासियों को जागरूक करती है दूसरी ओर रैलियों में खुलेआम अपने ही बनाए गए नियमों की अनदेखी करती है’.

देश के लिए यह भी दुखद कहा जाएगा कि जो काम सरकारों को करनी चाहिए वह अब अदालत को करना पड़ता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए हैं.

पिछली गलतियों से भी केंद्र सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. आज हम बात करेंगे कोरोना महामारी को लेकर केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग के गैर जिम्मेदाराना रवैये की. देश में बिगड़ते हालातों पर एक बार फिर दिल्ली हाईकोर्ट ‘सख्त’तेवर अपनाएं हैं.

पश्चिम बंगाल समेत कई प्रदेशों में चल रहे (उपचुुनाव) प्रचार के दौरान मास्क पहनने को अनिवार्य किए जाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है. ‘अदालत ने कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ बिना मास्क लगाए और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाकर इकट्ठा हो रही है, खासतौर पर पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियों के दौरान कोरोना नियमों की जमकर अनदेखी की जा रही है नेता बिना मास्क लगाए चुनाव प्रचार कर रहे हैं’.

उधर, मास्क न लगाने पर आम आदमी से अब तक अलग-अलग राज्यों में करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना वसूले जा चुके हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई. हाईकोर्ट में याचिका उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने डाली थी.

इस याचिका में कानून के सामने ‘बराबरी’ और ‘जीवन’ के मूल अधिकारों का हवाला देते हुए कहा गया है कि देश में सबके लिए नियम, कायदे सभी के लिए एक होने चाहिए.

चुनाव प्रचार के दौरान अगर प्रत्याशी, स्टार प्रचारक या समर्थक मास्क लगाने का नियम तोड़ें तो उन पर स्थायी तौर पर या फिर एक तय समय के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा देनी चाहिए.

अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद बंगाल में बचे पांच चरणों के चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में नेताओं को चुनावी रैलियों में भाषण के दौरान मास्क लगाना और जनता को सोशल डिस्टेंसिंग के नियम समझाना आसान नहीं होगा, क्योंकि वोट का सवाल है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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