यह देश के इतिहास में पहला ऐसा मौका होगा जब महाकुंभ के दौरान सबसे अधिक दहशत का माहौल देखा गया. हरिद्वार कुंभ के आयोजन को लेकर कई बार उत्तराखंड सरकार और केंद्र पर समय से पहले समाप्त करने का दबाव भी रहा. इसके बाद तीरथ सरकार ने कुंभ मेले का आयोजन एक महीना कर दिया था. इस बार महामारी की वजह से कई संतों की संक्रमित होने से मृत्यु हो गई. आखिरकार कुंभ का समापन शुक्रवार को हो गया.
वैसे हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद लगभग 15 दिन पहले ही इस को प्रतीकात्मक रूप दे दिया गया था. इस बार केवल 70 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में डुबकी लगाई. सामान्य परिस्थितियों में तीन माह से भी अधिक समय तक चलने वाले महाकुंभ महामारी के चलते कड़ी पाबंदियों के साथ इस बार एक अप्रैल से शुरू हुआ और इस दौरान 12, 14 और 27 अप्रैल को केवल तीन शाही स्नान हुए.
हर 12 साल में एक बार हरिद्वार में होने वाले महाकुंभ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जबकि इसकी अवधि और स्तर को बहुत कम रखा गया. इस बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान साधु संतों समेत ढाई हजार से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हुए. निरंजनी अखाड़ा के बाद जूना अखाड़ा और कई अन्य अखाड़ों ने काफी पहले से ही कुंभ क्षेत्र में अपनी छावनियां खाली कर दी थी और 27 अप्रैल के आखिरी शाही स्नान के लिए उनके केवल कुछ ही साधु बचे थे.