उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के तिमली में अपनी प्राचीन संस्कृति के संरक्षण के साथ आधुनिकता को जोड़ने की नवीन पहल की जा रही है. यहां पर आधुनिक वैदिक गुरुकुल की स्थापना की गई है.
जहां बटुक यानि छात्र वेद-वेदांग, ज्योतिष, कर्मकांड के साथ रोबेटिक्स, डिजाइनिंग, कंप्यूटर प्रोग्राम का ज्ञान हासिल करेंगे.
दीपावली के बाद गुरुकुल की कक्षाएं शुरू होगी. शुरू में दस बटुकों को यहां मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाएगी. बटुक वेद पढ़कर कर्मकांड के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेंगे, वहीं, आधुनिकता के दौर में अपने आप को कही पीछे नहीं पाएंगे.
द्वारीखाल ब्लॉक के डबरालस्यूं पट्टी में स्थित तिमली विद्यापीठ के संस्थापक आशीष डबराल ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय के बाद अब कक्षा छह से आवासीय वैदिक गुरुकुल की स्थापना की जा रही है.
साल 1882 से स्थापित तिमली संस्कृत पाठशाला का जीर्णोद्वार किया गया है. यहां छात्रों को वर्चुअल क्लासरूम वीक्रॉप टेक्नोलॉजी के सहयोग से दिल्ली एवं अन्य शहरों से शिक्षक मुफ्त में आधुनिक शिक्षा प्रदान करेंगे.
वैदिक पद्धति से छात्रों को प्रातः एवं सांयकालीन संध्या, हवन, भजन-कीर्तन के साथ वेद, उपनिषद, वेदांत, ज्योतिष व कर्मकांड की शिक्षा दी जाएगी.
वहीं, डिज़ाइन तकनीक, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, रोबोटिक्स,आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस तथा ऑटोमेशन का पाठ्यक्रम भी शामिल होगा. उत्तराखंड में यह पहला आधुनिक वैदिक गुरुकुल होगा.
डिज़ाइन तकनीक के लिए दुबई से आर्किटेक्ट प्रदीप विंटील, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग एवं आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की शिक्षा ललित पंत देंगे. पंत ने बताया कि छात्र कंप्यूटर के माध्यम से संस्कृत, तंत्र, मंडल तथा यंत्रों को समझेंगे.
सांस्कृतिक एवं लोक संगीत के संवर्धन एवं छात्रों को धरोहर से जोड़ने के लिए संगीतशाला की स्थापना की जा रही है. सुप्रसिद्ध संगीतकार चंद्र सिंह राही को समर्पित संगीतशाला को उनके पुत्र राकेश भारद्वाज द्वारा संचालित किया जाएगा.
भारद्वाज ने कहा कि ढोल सागर, जागर आदि को पुनः उनके वास्तविक रूप में देखने की आवश्यकता है. रोबोटिक्स एवं ऑटोमेशन के लिए मेकर्स दुनिया इन्नोवेटर्स एवं रोबो फन लैब का सहयोग लिया.
तिमली विद्यापीठ के आशीष डबराल ने बताया कि पूर्व में भी अनेक विद्वानों एवं संतों ने यहां से शिक्षा ग्रहण की है. जिसमे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य ब्रह्मलीन माधवाश्रम, देहरादून स्थित दरबार साहिब के पूर्व महंत ब्रह्मलीन इंदिरेश चरण दास, आचार्य ललिता प्रसाद डबराल तथा सिद्धकवि सदानंद डबराल जैसे व्यक्तित्व शामिल हैं.
पूर्व की परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए वैदिक आधुनिक गुरुकुल की शुरूआत की जा रही है. जिससे संस्कृति का संरक्षण भी होगा और आधुनिकता को जानकर छात्र अपना भविष्य बना सकेंगे