ग्राफिक एरा के एक वैज्ञानिक ने दुनिया को एक नायाब तोहफा दिया है. वैज्ञानिक डॉ. वारिज पंवार ने गन्ने के रस से ऐसी मेम्बरेन तैयार की है जो कुछ महिने बाद घुल जाएगी. फिल्टर, सेंसर आदि में काम आने वाली इस बहुत सस्ती मेम्बरेन का पेटेंट भी हो गया है.
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ वारिज पंवार ने कई माह के शोध के बाद यह मेम्बरेन ( एक तरह की सूखी झिल्ली) तैयार करने में कामयाबी हासिल की है, जो छह से आठ माह उपयोग के बाद स्वयं घुल कर खत्म हो जाती है.
इस तरह डॉ. वारिज ने दुनिया को एक ऐसा उपहार दिया है, जो पॉलिथिन आदि से होने वाले प्रदूषण से भी बचाएगा और सस्ता भी होगा. ग्राफिक एरा की पॉलिमर सेंसर एंड एक्चुएटर लैब में यह मेम्बरेन तैयार किया गया है.
उन्होंने बताया कि मेम्बरेन का उपयोग पानी के शुद्धिकरण, बायो फ्यूल सैल के जरिये औद्योगिक कचरे से बिजली बनाने, इलेक्ट्रिक कारों, विभिन्न प्रकार के सेंसर बनाने जैसे तमाम कार्यों में किया जाता है.
इसके लिए अभी तक आयोनिक लिक्विड जैसे कॉमर्शियल लिक्विड इस्तेमाल किए जा रहे थे, जो बहुत महंगे हैं. डॉ वारिज ने बताया कि बहुत सस्ती दरों पर उपलब्ध गन्ने के रस से एक विशेष विधि से यह मेम्बरेन तैयार किया गया है.
करीब 2 पैसे प्रति वर्ग सेंटीमीटर की लागत पर यह मेम्बरेन तैयार हो जाता है. औद्योगिक उत्पादन की स्थिति में यह लागत और घट जाएगी. हालांकि अभी इससे आठ गुने से अधिक लागत पर मेम्बरेन बनाये जा रहे हैं. केंद्र सरकार ने गन्ने के रस से मेम्बरेन बनाने की इस नई तकनीक का पेटेंट ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के नाम से दर्ज कर लिया है.
यह पेटेंट अगले 20 वर्षों के लिए ग्राफिक एरा को दिया गया है. इससे पहले डॉ वारिज पंवार गन्ने के रस से ही एक पॉलिमर सेंसर तैयार कर चुके हैं, उसका पेटेंट मार्च, 2021 में आस्ट्रेलिया की सरकार ने में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के नाम दर्ज हो चुका है.
ग्राफिक एरा एजुकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ कमल घनशाला ने इस कामयाबी पर डॉ वारिज पंवार को बधाई देते हुए कहा कि दुनिया की आधुनिकतम तकनीकों से सुसज्जित ग्राफिक एरा की प्रयोगशालाएं आगे बढ़ने की नई संभावनाएं खोलती हैं और नई खोजों के जरिये यहां की फैकल्टी दुनिया में अपनी प्रतिभा की धाक जमा रही है.