पटना| बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों के नतीजों का ऐलान हो चुकी है. 112 के जादुई आंकड़े को पार कर एनडीए ने अपनी सत्ता बरकरार रखी और 112 सीटों के साथ महागठबंधन को हार का स्वाद चखना पड़ा है.
लेकिन महागठबंधन की हार के बावजूद आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है और तेजस्वी की झोली में 75 सीटें आई हैं.
आरजेडी की बड़ी पार्टनर कांग्रेस के खाते में 19 सीटें गई हैं. यह तो वो आंकड़े हैं जिनमें सिर्फ 10 सीट का इजाफा होता तो बिहार की गद्दी पर तेजस्वी यादव काबिज हो जाते.
लेकिन 10 सीटों की कमी ने उनका खेल खराब कर दिया और सत्ता की कुर्सी से दूर हो गए. अब हम आप को बताएंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि तेजस्वी का 10 लाख नौकरियों वाला दांव काम नहीं कर सका.
बिहार में तीन चरणों में चुनाव हुआ जिसमें तीसरे चरण का चुनाव दोनों गठबंधनों के लिए टर्निग प्वाइंट सिद्ध हुआ. तीसरे चरण के चुनाव में मतदान के प्रतिशत में महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा रही.
इसके अतिरिक्त सीमांचल में भी इसी फेज में मतदान हुआ और उसका असर महागठबंधन पर पड़ा. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन की जीत पर ग्रहण लगा दिया और नीतीश के लिए महिलाओं का समर्थन काम कर गया.
अब बात करते हैं कि 10 लाख नौकरियों के वादे का क्या हुआ. अगर इस सवाल का जवाब देखें तो एक बात स्पष्ट है जो महागठबंधन की सीटों में दिखाई देती है.
अगर आरजेडी के आंकड़ों को देखें तो 10 लाख की नौकरियों का थोड़ा बहुत असर दिखाई दे रहा है जिसकी वजह से वो 75 की टैली तक पहुंचने में कामयाब रहे.
दूसरे चरण के चुनावी नतीजों को देखें तो भोजपुर के इलाके में 10 लाख की नौकरियों का दांव काम करता हुआ नजर आ रहा है. लेकिन पहले और तीसरे चरण के चुनाव में यह दांव करिश्मा नहीं दिखा सका.
अब महागठबंधन में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करते हैं. अगर कांग्रेस के प्रदर्शन को देखा जाए तो 2015 के स्टेट्स को बनाये रखने में वो नाकाम रहे हैं.
70 सीटों पर इलेक्शन लड़ने के बावजूद उन्हें सिर्फ 19 सीटें हासिल हुई और यह आंकड़ा तेजस्वी यादव के विजय रथ को रोकने में ब्रेक बन गया.
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस अपने बेहतर प्रदर्शन को भी दोहरा नहीं सकी और इसका असर महागठबंधन की ओवरऑल टैली में नजर आ रहा है.