यूपी के वाराणसी में गंगा का पानी हरा होने से जिलाधिकारी की चिंता बढ़ गई थी. इसका कारण पता लगाने के लिए उन्होंने एक जांच कमिटी गाठित की जिसमें उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी शामिल किया गया.
जांच कमिटी ने गंगा के पानी का सैम्पल लेकर जांच किया जिसकी रिपोर्ट शासन को सौप दिया गया है. रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि गंगा का पानी मिर्जापुर में गंगा के किनारे यानी आप स्टीम में बने एक पुराने एसटीपी के कारण हरा हुआ है जिसके कारण शैवाल बन गया है.
उस एसटीपी को पुराने तकनीक से चलाया जा रहा है जो कि लीकेज करता है और सीवेज गंगा में जाता है. यही कारण है कि डाउन स्ट्रीम यानी वाराणसी में गंगा के पानी में शैवाल जमा हो गए हैं.
रिपोर्ट में उस बात का भी खुलासा हुआ है कि गंगा के पानी में नाइट्रोजन और फास्फोरस मानक से अधिक पाया गया है,जो ऑक्सीजन लीविल को काफी कम कर देता है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने अभी बनारस की जनता से ये अपील की है कि अभी चार-पांच दिनों तक गंगा में स्नान या फिर आचमन न करें. उनका दावा है कि गंगा में पानी की मात्रा बड़ी है जिसके कारण शैवाल जल्द खत्म हो जाएंगे.
बीएचयू के इंस्टीट्यट ऑफ इंवॉइरमेंटल स्टडीज के प्रोफेसर कृपा राम भी मानते हैं कि इस वक्त आचमन और गंगा स्नान से बचने की आवश्यकता है. प्रो. कृपा के मुताबिक गंगा के ऊपर बना ये शैवाल सूर्य के रेडिएशन के खिलाफ एक कवच का काम करता है जिसकी वजह से नदी के जल में बीओडी की कॉनसन्ट्रेशन कम होने लगती है. लम्बे समय तक अगर ये स्थिति अगर बनी रहती है तो निश्चित तौर पर जलीय जीवों को इससे नुकसान होगा क्योंकि ये शैवाल का कवच बीओडी की कॉनसन्ट्रेशन को बढ़ने से ब्लॉक कर देंगे. रही बात पानी में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की बढ़ी मात्रा की वजह से कम से कम फिलहाल आचमन और स्नान करने से परहेज़ ही बेहतर विकल्प है.
कैसे बने ये हालात?
हालांकि शासन के दावा है कि जल्द ही स्थित काबू में आ जाएगी. लेकिन जिस तरह से प्रदूषण विभाग ने गंगा के पानी का आचमन न करने की बात कही है उससे एक बार फिर के प्रदूषण मुक्ता अभियान पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. जबकि ये दावा किया जाता है कि गंगा अब पहले से साफ हो गयी हैं, लेकिन सवाल ये हैं कि जब गंगा साफ हो गई हैं तो ये हालात कैसे बने.