देहरादून| गुरुवार को पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने निर्वाचन क्षेत्र डोईवाला में खुद को प्रदेश के सीएम पद से हटाए जाने के बाबत बड़ा बयान देते हुए कहा उन्हें नहीं पता, उन्हें क्यों हटाया गया.
जानकारी के लिए आप को बता दें कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी कुर्सी जाने के करीब एक महीने बाद कोई बड़ा बयान दिया है. यही नहीं, सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद भी रावत ने कहा था कि अगर मेरे इस्तीफे की वजह जाननी है तो आपको दिल्ली जाना होगा.
साफ तौर पर उनका इशारा भाजपा हाईकमान की तरफ था. हालांकि राजनीति के कई जानकारों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने को लेकर कहा कि बीते समय में पार्टी में गुटबाजी तेज होना, प्रशासन के स्तर पर ढीलापन और राज्य में विकास कार्यों की धीमी रफ्तार ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया. इसी वजह से उनकी कुर्सी चली गई.
यही नहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात करें तो उनके कई निर्णयों को लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी थी, लेकिन एक निर्णय ने सबसे ज्यादा विवाद पैदा किया. ये निर्णय था चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बिल. इस बिल को लेकर बीजेपी नेताओं के अलावा आरएसएस और विहिप में भी नाराजगी थी.
इन सभी का मानना था कि राज्य सरकार को मंदिरों के नियंत्रण से दूर रहना चाहिए. जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत का मानना था कि सरकारी नियंत्रण के जरिए मंदिरों के प्रबंधन की और बेहतर व्यवस्था की जा सकती है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को उत्तराखंड की तीसरी कमिश्नरी बनाने का फैसला लिया था. उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से दो कमिश्नरी कुमाऊं और गढ़वाल हैं. इसे लेकर पहले की दो कमिश्नरी के लोगों में गुस्सा था. कहा गया कि इस निर्णय को लेकर टॉप लीडरशिप में भी नाराजगी थी.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि रावत के बीजेपी में दोस्त बिल्कुल न के बराबर हैं. पार्टी के दिग्गज नेताओं में रावत को समर्थन देने वाले नेता तकरीबन नहीं हैं.
महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के नजदीकी नेताओं में शुमार किए जाने वाले रावत को ‘दुश्मनी’ की कीमत भी चुकानी पड़ी.