विशेष खबर: नेता बनने के लिए पांडेय ने आईपीएस की दूसरी बार छोड़ी नौकरी, इस बार जेडीयू ने दिया धोखा

रिटायरमेंट होने में कुछ समय रह गया था, सोचा कि अब नेतागिरी में हाथ आजमाया जाए. ‘विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्रियों के साथ कंधा से कंधा मिलाने के लिए सपने देखने लगे’.

लेकिन इंसान जो सोचता है वह अक्सर होता नहीं है, ‘ऐसा ही बिहार विधानसभा चुनाव आने से कुछ समय पहले तत्कालीन राज्य के पुलिस के सबसे बड़े मुखिया यानी डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने सोचा था कि अब वीआरएस ले लेते हैं आराम से विधानसभा में सरकार के साथ बैठेंगे’.

नेता बनने के लिए गुप्तेश्वर इसकी तैयारी एक वर्ष से कर रहे थे. बिहार मूल के निवासी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय देश की सुर्खियों में छा गए.

सुशांत केस में गुप्तेश्वर पांडेय ने उद्धव ठाकरे सरकार और महाराष्ट्र पुलिस पर लापरवाही बरतने पर कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर डाली. अभिनेता की मौत के मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगातार लगाए जा थे.

इस बीच डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे सीएम नीतीश कुमार का पक्ष बहुत जोर-शोर से उठा रहे थे, पांडेय ने महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार के नीतीश सरकार पर हमले को लेकर बिहार सरकार का बचाव भी किया. अपने बयानों से उन्होंने बिहार की राजनीति में काफी सुर्खियां बटोरी.

सुशांत सिंह केस के मामले में गुप्तेश्वर पांडे का इतना मुखर होना पहले ही संकेत दे गया था कि वह जेडीयू के साथ इस बार राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले हैं. ‘उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी गुप्तेश्वर पांडेेय को टिकट देने के लिए आश्वासन दे दिया था.

उसके बाद गुप्तेश्वर पांडे ने डीजीपी के पद सेे वीआरएस लेकर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी. लेकिन अब जेडीयू की जारी की गई 115 उम्मीदवारों की लिस्ट में गुप्तेश्वर का नाम नहीं है.

जेडीयू की लिस्ट में नाम न होने पर बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर अपने आप को ही दिलासा देने में लगे हुए हैं. आपको बता दें कि गुप्तेश्वर पांडेय को आम जनमानस के अलावा सरकार की नजर में अपराध नियंत्रक और कड़क प्रशासक के साथ संवेदनशील पुलिसकर्मी के रूप में भी जाना जाता है.

विधायकी के चक्कर में 11 साल पहले भी पांडेय ने दिया था इस्तीफा, तब बीजेपी ने किया निराश
यह पहली बार उनके साथ नहीं हुआ बल्कि 11 साल पहले भी गुप्तेश्वर पांडेय वीआरएस लेकर भारतीय जनता पार्टी से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें ऐनमौके पर टिकट नहीं दिया.

अब एक बार फिर भाजपा के बाद जेडीयू ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है. ‘2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भी उन्होंने इस्तीफा दिया था. तब वह भाजपा के टिकट पर बिहार की बक्सर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी तब फिर गया जब पार्टी ने दोबारा लालमुनि चौबे को बक्सर से अपना प्रत्याशी बना दिया’.

उसके बाद निराश गुप्तेश्वर पांडे ने टिकट न मिलने पर उन्होंने इस्तीफा वापस लेने की अर्जी दी जिसे तत्कालीन नीतीश कुमार सरकार ने मंजूर कर लिया. नौ महीनों के बाद वह फिर से पुलिस सेवा में बहाल हो गए थे. पांडेय ने 2009 में जब वीआरएस लिया था तब वो आईजी थे और 2019 में उन्हें बिहार का डीजीपी बनाया गया था.


गुप्तेश्वर पांडेय को इस बार टिकट न देना जेडीयू की मजबूरी रही या सियासी दांव!
इस बार जेडीयू का पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को बक्सर सीट से टिकट दे देना मजदूरी रही या सियासी दांव? ‘पिछले दिनों गुप्तेश्वर पांडेय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में जेडीयू की सदस्यता भी ली थी. ऐसे में उनके बक्सर सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें काफी दिनों से थी’.

गुप्तेश्वर ने अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया था. हालांकि इस बार गुप्तेश्वर पांडेय के अरमानों पर पानी इसलिए फिर गया, क्योंकि बक्सर सीट बीजेपी के खाते में चली गई है. बीजेपी ने बक्सर सीट से परशुराम चतुर्वेदी को अपना प्रत्याशी बना दिया.

बक्सर सीट बीजेपी के खाते में चले जाना भले ही गुप्तेश्वर के लिए राजनीतिक तौर पर झटका माना जा रहा. इसके बाद निराश गुप्तेश्वर पांडेय ने अपने दिल को एक बार फिर सांत्वना दी है.

गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा, लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा हूं. उन्होंने कहा कि मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है, मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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