पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों की तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है. अब सभी पार्टियों के नेता और रणनीतिकार अपनी हार-जीत का आकलन करने में लगे हुए हैं. बंगाल में टीएमसी को मिली बड़ी जीत के बाद ममता बनर्जी फिलहाल खुश हैं. वहीं भाजपा केंद्रीय हाईकमान बंगाल में क्या ‘कमियां’ रह गईं तलाशने में जुटा हुआ है. तमिलनाडु में डीएमके नेता स्टालिन भी चुनाव परिणामों से ‘संतुष्ट’ है .
ऐसे ही मुख्यमंत्री पी विजयन भी केरल में सबसे ‘लोकप्रिय नेता’ के रूप में उभर कर आए हैं. लेकिन आज हम चर्चा करेंगे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की. 2 मई, रविवार को जब पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे तो केरल के वायनाड से कांग्रेस के सांसद ‘राहुल गांधी पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत और भाजपा की हार पर इतने उत्साहित हुए कि उन्हें असम और केरल में मिली कांग्रेस की हार को भूलकर ममता बनर्जी के जश्न पर अपनी खुशियां तलाशने लगे’.
राहुल के लिए खुशी सिर्फ बीजेपी की हार से मिल रही है. लेकिन दूसरे की हार में अपनी खुशी तलाशने को मजबूर कांग्रेस इस तरह तो अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने में एक बार फिर नाकाम रही है. ‘सही मायने में कांग्रेस अब राहुल गांधी को समझ नहीं पा रही है या राहुल, कांग्रेस को नहीं समझ पा रहे हैं’ ? इन पांचों राज्यों में हुए चुनावों नतीजों के बाद जिस प्रकार विपक्षी राजनीतिक दलों, एनसीपी राष्ट्रीय जनता दल, नेशनल कॉन्फ्रेंस, शिवसेना, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, अकाली दल समेत आदि पार्टियों के नेताओं ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जीत की बधाई देकर उनका राष्ट्रीय स्तर पर ‘कद’ बढ़ा दिया है.
यह कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए ‘खतरे की घंटी’ भी मानी जा रही है. सही मायने में ‘विपक्ष दल अब गांधी परिवार के किसी भी नेता को मोदी और अमित शाह के सामने मजबूत नेतृत्व मानने को तैयार नहीं होगा’. इसका कारण भी हम आपको बता दे देते हैं. पिछले कुछ वर्षों में एक के बाद एक चुनावी शिकस्त से उबरने की कोशिश में लगी कांग्रेस को इस बार 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हुए इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी. लेकिन जो नतीजे आए हैं उससे पार्टी की दिक्कतें कम होने के बजाय बढ़ने के आसार बन रहे हैं.
असम, केरल और पुडुचेरी में चुनावी हार, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सफाया होना न सिर्फ पार्टी, बल्कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी झटका है. उनके शुभचिंतक मान रहे थे कि केरल और असम में पार्टी यदि सरकार बनाने में सफल रही तो राहुल के फिर से अध्यक्ष पद संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राहुल गांधी ने केरल में पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन वह कई गुटों में बंटी नजर आ रही कांग्रेेस राज्य इकाई को एक छतरी के नीचे लाने में विफल रहे . बता दें कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल से कांग्रेस अधिकतम सीटें जीती थीं और खुद राहुल गांधी भी प्रदेश से वायनाड लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए थे.
‘पश्चिम बंगाल में ममता के विजेता बनने के बाद आने वाले दिनों में विपक्ष की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की दावेदारी में कई नाम जुड़ जाएंगे, हालांकि कांग्रेस का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का वह एकमात्र विकल्प है’. अब कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ सकती है. जनवरी, 2021 में कांग्रेस कार्य समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि इस साल जून में ‘किसी भी कीमत पर नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा.
अब कांग्रेस नेतृत्व में एक बार फिर असंतुष्ट खेमे की ओर से बगावती तेवर अब और तेज हो सकते हैं. गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी वाला ‘जी 23’ समूह अपना अगला कदम उठाने का इंतजार कर रहा है.