चेन्नई| तमिलनाडु के कुन्नूर में बुधवार को भारतीय वायुसेना का जो हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, उसका फ्लाइट रिकॉर्डर यानी ‘ब्लैक बॉक्स’ बरामद कर लिया है. इससे हादसे के कारणों का पता चल पाएगा.
अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जंगल के बीच यह दुर्घटना किस तरह हुई. इससे यह भी पता चल सकेगा कि हेलीकॉप्टर में सवार देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की उसमें सवार 13 अन्य लोगों के साथ आखिरी क्षणों में क्या बात हुई थी.
इस दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत सहित 13 सैन्य अधिकारियों की जान चली गई, जबकि हादसे में एकमात्र जिंदा बचे ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह अभी लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर हैं. पूरा देश उनके लिए प्रार्थना कर रहा है.
जरनल रावत का पार्थिक शरीर आज रात करीब 8 बजे दिल्ली लाया जाना है. उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को होगा. इस घटना से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है, जिसमें 13 वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की जान चली गई.
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, ब्लैक बॉक्स की तलाश का दायरा दुर्घटनास्थल से 300 मीटर दूर से बढ़ाकर एक किलोमीटर तक कर दिया गया था, जिसके बाद इसे बरामद कर लिया गया. सूत्रों के अनुसार, फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर समेत दो बॉक्स एक ही स्थान से बरामद किए गए हैं.
इन्हें दिल्ली या बेंगलुरु ले जाया जा सकता है, जहां हादसे की वजह का पता लगाने के लिए विशेषज्ञ इसका अध्ययन करेंगे. इससे दुर्घटना के कारणों का पता चलने और अन्य जानकारियां सामने आने की उम्मीद की जा रही है.
क्या होता है ब्लैक बॉक्स
जब भी कोई हेलीकॉप्टर या विमान हादसा होता है, विशेषज्ञ उसके ब्लैक बॉक्स की बरामदगी में जुट जाते हैं. तमिलनाडु के कुन्नूर में भारतीय वायुसेना का जो हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ है, उसमें भी ब्लैक बॉक्स की तलाश थी, जो मिल गया है.
यह एक वॉयस रिकॉर्डर होता है, जिसमें सभी बातें रेकॉर्ड होती हैं. विमान या हेलीकॉप्टर का पायलट लगातार कंट्रोल रूम के संपर्क में होता है. ऐसे में उनकी जो भी बातें होती हैं, वो इसमें रिकॉर्ड हो जाती है.
हादसे से पहले क्या बात हुई, पायलट ने क्या बताया? यह सबकुछ ब्लैक बॉक्स से पता चल जाता है. कुन्नूर हादसे में हेलीकॉप्टर दुर्घटनास्थल से कुछ दूरी पर मिला. समझा जा रहा है कि हादसे के बाद यह छिटककर दूर जा गिरा होगा. इसे फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (FDR) भी कहा जाता है.
यह सबसे मजबूत धातु टाइटेनियम से बना होता है. इसमें भीतर की तरफ इस तरह से सुरक्षित दीवारें बनी होती हैं कि हादसे के बाद भी यह अमूमन सुरक्षित होता है और इसका पता लगा पाना संभव होता है कि उससे ठीक पहले आखिर हुआ क्या था.