प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को अपनी कैबिनेट में सबसे बड़ा बदलाव किया. उन्होंने 12 पुराने मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, जबकि 36 नए चेहरों को कैबिनेट में जगह दी गई. इस बार एक नए मंत्रालय की भी घोषणा की गई. ये है मिनिस्ट्री ऑफ को-ऑपरेशन(सहकारिता मंत्रालय).
इस मंत्रालय की ज़िम्मेदारी गृहमंत्री अमित शाह को दी गई है. इससे पहले को-ऑपरेशन से जुड़े मामलों के कृषि मंत्रालय देखती थी. सवाल ये है कि आखिर क्यों मोदी सरकार को इस नए मंत्रालय की जरूरत पड़ी. आखिर क्या होगा इस मंत्रालय का काम? आइए विस्तार से इसे समझने की कोशिश करते हैं.
सहकारिता आमतौर पर ज़मीनी स्तर पर लोगों का एक ग्रुप है, जो किसी खास लक्ष्य को पाने के लिए मिलकर काम करते हैं. कृषि में सहकारी डेयरियां, चीनी मिलें, ये सब किसानों के एकत्रित संसाधनों से बनाई जाती हैं. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1,94,195 सहकारी डेयरी समितियां और 330 सहकारी चीनी मिल संचालन हैं. 2019-20 में, डेयरी सहकारी समितियों ने 1.7 करोड़ सदस्यों से 4.80 करोड़ लीटर दूध खरीदा था और प्रति दिन 3.7 करोड़ लीटर दूध बेचा था. इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में सहकारी संस्थाएं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फैली हुई हैं.
कृषि की तरह, सहयोग समवर्ती सूची में है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें उन पर शासन कर सकती हैं. ज्यादातर सहकारी समितियां संबंधित राज्यों में कानूनों द्वारा शासित होते हैं. एक सहकारिता आयुक्त और सोसायटी के रजिस्ट्रार इसे चलाते हैं.
2002 में, केंद्र ने एक बहुराज्य सहकारी समिति अधिनियम पारित किया, जिसने एक से अधिक राज्यों में संचालन वाली समितियों के पंजीकरण की अनुमति दी. ये ज्यादातर बैंक, डेयरियां और चीनी मिलें हैं जिनका संचालन क्षेत्र राज्यों में फैला हुआ है. सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज उनका कंट्रोलिंग अथॉरिटी है, लेकिन जमीन पर स्टेट रजिस्ट्रार उनकी ओर से कार्रवाई करता है.
प्रेस सूचना ब्यूरो की एक मीडिया विज्ञप्ति में कहा गया है कि मिनिस्ट्री ऑफ को-ऑपरेशन देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा. इसके तहत कहा गया है , ‘ये जमीनी स्तर तक पहुंचने वाले एक सच्चे जन आधारित आंदोलन के रूप में सहकारिता को मजबूत करने में मदद करेगा.
हमारे देश में सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है, जहां हर सदस्य जिम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है. मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए ‘व्यापार करने में आसानी’ के लिए प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) के विकास को सक्षम बनाने के लिए काम करेगा.’ अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी सहकारिता को मजबूत करने की आवश्यकता का उल्लेख किया था.
सहकारिता आंदोलन क्या है
सहकारिता आमतौर पर ज़मीनी स्तर पर लोगों का एक ग्रुप है, जो किसी खास लक्ष्य को पाने के लिए मिलकर काम करते हैं. कृषि में सहकारी डेयरियां, चीनी मिलें, ये सब किसानों के एकत्रित संसाधनों से बनाई जाती हैं. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1,94,195 सहकारी डेयरी समितियां और 330 सहकारी चीनी मिल संचालन हैं. 2019-20 में, डेयरी सहकारी समितियों ने 1.7 करोड़ सदस्यों से 4.80 करोड़ लीटर दूध खरीदा था और प्रति दिन 3.7 करोड़ लीटर दूध बेचा था. इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में सहकारी संस्थाएं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फैली हुई हैं.
सहकारी समितियों को कौन से कानून नियंत्रित करते हैं
कृषि की तरह, सहयोग समवर्ती सूची में है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें उन पर शासन कर सकती हैं. ज्यादातर सहकारी समितियां संबंधित राज्यों में कानूनों द्वारा शासित होते हैं. एक सहकारिता आयुक्त और सोसायटी के रजिस्ट्रार इसे चलाते हैं. 2002 में, केंद्र ने एक बहुराज्य सहकारी समिति अधिनियम पारित किया, जिसने एक से अधिक राज्यों में संचालन वाली समितियों के पंजीकरण की अनुमति दी. ये ज्यादातर बैंक, डेयरियां और चीनी मिलें हैं जिनका संचालन क्षेत्र राज्यों में फैला हुआ है. सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज उनका कंट्रोलिंग अथॉरिटी है, लेकिन जमीन पर स्टेट रजिस्ट्रार उनकी ओर से कार्रवाई करता है.
नया मंत्रालय क्यों जरूरी था
एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत करते हुए महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर मिल्स के पूर्व प्रबंध निदेशक संजीव बाबर ने कहा कि देश में सहकारी ढांचे के महत्व को बहाल करना आवश्यक है. उन्होंने कहा, ‘बैकुंठ मेहता सहकारी प्रबंधन संस्थान जैसे संस्थानों द्वारा किए गए अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि सहकारी संरचना फलने-फूलने में कामयाब रही है और केवल कुछ मुट्ठी भर राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक में अपनी छाप छोड़ी है. नए मंत्रालय के तहत, सहकारी आंदोलन को दूसरे राज्यों में भी जाने का मौका मिलेगा.’ पिछले कुछ सालों में, सहकारी क्षेत्र में धन की कमी देखी गई है. बाबर ने कहा कि नए मंत्रालय के तहत सहकारी ढांचे को नया जीवन मिलेगा.
साभार-न्यूज 18