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जाने माने गीतकार और कवि कुंवर बेचैन कोरोना की जंग हारे

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कुंवर बेचैन

जाने माने गीतकार और कवि कुंवर बेचैन आखिरकार कोविड-19 से जंग में हार ही गए. नोएडा के कैलाश अस्‍पताल में गुरुवार दोपहर उन्‍होंने आखिरी सांस ली. 15 अप्रैल को उन्‍हें दिल्‍ली के Cosmos Hospital से नोएडा के कैलाश अस्‍पताल में वेंटिलेटर पर लाया गया था.

प्रख्‍यात कवि डॉ. कुमार विश्‍वास ने ट्वीट कर कुंवर बेचैन के स्‍वास्‍थ्‍य की जानकारी देते हुए वेंटिलेटर की मांग की थी. कुमार विश्‍वास के ट्वीट के बाद सांसद गौतमबुद्धनगर डॉ. महेश शर्मा ने संज्ञान लिया था और उन्‍हें कैलाश अस्‍पताल में भर्ती कराया था.

कुंवर बेचैन के निधन पर डॉ. कुमार विश्‍वास ने ट्वीट करते हुए दुख जताया. उन्‍होंने ल‍िखा- कोरोना से चल रहे युद्धक्षेत्र में भीषण दुःखद समाचार मिला है. मेरे कक्षा-गुरु,मेरे शोध आचार्य, मेरे चाचाजी, हिंदी गीत के राजकुमार, अनगिनत शिष्यों के जीवन में प्रकाश भरने वाले डॉ कुँअर बेचैन ने अभी कुछ मिनट पहले ईश्वर के सुरलोक की ओर प्रस्थान किया. कोरोना ने मेरे मन का एक कोना मार दिया!

कुंवर बेचैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ था. ‘बेचैन’ उनका तख़ल्लुस है असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना था. वह गाज़ियाबाद के एम.एम.एच. महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे. वह आज के दौर के सबसे बड़े गीतकारों और शायरों में लिस्‍ट में शुमार थे.

‘पिन बहुत सारे’, ‘भीतर साँकलः बाहर सांकल’, ‘उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख’, ‘एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की’, ‘दिन दिवंगत हुए’, ‘ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने कांच के’, ‘महावर इंतज़ारों का’, ‘रस्सियां पानी की’, ‘पत्थर की बांसुरी’, ‘दीवारों पर दस्तक ‘, ‘नाव बनता हुआ काग़ज़’, ‘आग पर कंदील’, जैसे उनके कई और गीत संग्रह हैं, ‘नदी तुम रुक क्यों गई’, ‘शब्दः एक लालटेन’, पांचाली (महाकाव्य) उनके कविता संग्रह हैं.


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