डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की तैयारी डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस (DEWs) के लिए एक नैशनल प्रोग्राम चलाने की है.
पूरी दुनिया में ऐसे हथियारों की पूछ बढ़ रही है ताकि आमना-सामना हुए बिना ही युद्ध लड़े जा सकें. ये हथियार कुछ-कुछ वैसे ही होंगे जैसे फैंटेसी मूवी सीरीज ‘स्टार वार्स’ में दिखाए गए हैं.
DRDO के इस नैशनल प्लान में शॉर्ट, मीडियम और लॉन्ग टर्म के लिए लक्ष्य तय किए जाएंगे. कोशिश होगी कि घरेलू इंडस्ट्री के साथ मिलकर 100 किलोवाट क्षमता तक के DEWs डेवलप किए जा सकें.
DRDO पहले से ही कई DEW प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है. इसमें ‘केमिकल ऑक्सिजन आयोडीन’ से लेकर ‘हाई पावर फाइबर’ लेसर तक शामिल हैं.
DRDO एक पार्टिकल बीम वेपन ‘काली’ पर भी काम कर रहा है. हालांकि इनमें से कोई भी ऑपरेशनल होने के करीब नहीं है.
परंपरागत हथियारों में काइनेटिक/केमिकल एनर्जी का इस्तेमाल होता है. मिसाइलों व अन्य प्रक्षेपास्त्रों की मदद से टारगेट को उड़ाया जाता है.
डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस में टारगेट पर इलेक्ट्रॉनिक/मैग्नेटिक एनर्जी या सबएटॉमिक पार्टिकल्स की बौछार की जाती है. इनके दो मेजर सब-सिस्टम होते हैं- लेसर सोर्स और पार्टिकल बीम कंट्रोल सिस्टम.
पावर की बात करें तो एक मिसाइल को उड़ाने के लिए किसी लेसर वेपन को 500 किलोवॉट की बीम की जरूरत पड़ेगी.
ये पहली बार नहीं है जब DRDO का ध्यान इस तरफ गया है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन पहले से कई DEW (डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स) प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है. इसमें हाई पॉवर फाइबर लेसर से लेकर केमिकल ऑक्सीजन आयोडीन तक शामिल हैं.
जिस हथियार से लड़ाई आपने अभी तक सिर्फ फिल्मों में देखी है आखिर वो है क्या. जिन हथियारों का उपयोग सेनाएं करती हैं, जिन्हें हम आमतौर पर परंपरागत हथियार कहते हैं, उनमें केमिकल एनर्जी का इस्तेमाल किया जाता है.
इन हथियारों को मिसाइल की मदद से उड़ाया जाता है. जबकि इस नए हथियार में टारगेट पर इलेक्ट्रॉनिक/मग्नेटिक एनर्जी या सबएटॉमिक पार्टिकल की बौछार की जाती है.
क्या हैं ऐसे हथियारों के फायदे?
– प्रकाश की गति से लगते हैं, निशाना एकदम सटीक.
– एक शॉट पर कम खर्च आता है, मिसाइलों के मुकाबले फ्लेक्सिबल.
– रैपिड री-टारगेटिंग के साथ कई टारगेट्स को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है.
– अगर पावर सप्लाई पर्याप्त हो तो इनका जब तक चाहें, इस्तेमाल जारी रख सकते हैं.