कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो राज्य सरकारों की गले की फांस बन जाते हैं. नेतृत्व परिवर्तन होने के बाद भी कुछ पूर्व के आदेशों को पलटना नए मुख्यमंत्रियों के लिए ‘आसान’ नहीं होता है. आज बात करेंगे उत्तराखंड की भाजपा सरकार और चार धाम के तीर्थ पुरोहितों के बीच जारी ‘घमासान’ को लेकर.
तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने केदारनाथ, बद्रीनाथ यमुनोत्री और गंगोत्री चारों धामों के साथ कुल 51 मंदिरों के लिए ‘देवस्थानम बोर्ड गठित’ किया था. इस गठन से उत्साहित त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था उत्तराखंड के इतिहास में देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन अब तक का सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है और भविष्य की सोच के साथ फैसला लिया गया. लेकिन उनका यह फैसला तीर्थ पुरोहितों को नागवार गुजरा.
यही नहीं त्रिवेंद्र सिंह को अपने फैसले को लेकर विरोध का सामना भी करना पड़ा था. तीर्थ पुरोहितों के विरोध की ‘गूंज’ दिल्ली तक सुनाई दी . ‘इसी साल 9 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ भी धोना पड़ा’. त्रिवेंद्र को कुर्सी से हटाने की एक वजह देवस्थानम बोर्ड का गठन और तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी भी बनी थी. खैर, उसके बाद नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सत्ता संभाली.
अपने छोटे से कार्यकाल (करीब 4 माह) में तीरथ सिंह रावत पर भी देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का भारी दबाव था. लेकिन वह चाहकर भी पूर्व के आदेश को पलट नहीं सके. उसके बाद पिछले महीने 4 जुलाई को युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य की कमान संभाली. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही धामी पर तीर्थ पुरोहितों का देवस्थानम बोर्ड गठित करने का दबाव बढ़ना शुरू हो गया.
लेकिन धामी भी इस मामले में संभल-संभल कर कदम बढ़ाने में लगे हुए हैं. दूसरी ओर आज पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक महत्वपूर्ण और बड़ा बयान देते हुए कहा कि उन्हें पद से हटाने के बारे में उन्हें कोई भनक नहीं थी क्योंकि उनकी सरकार के कामकाज की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा की थी. यही नहीं देवस्थानम बोर्ड एक्ट के मुद्दे पर सीएम पुष्कर सिंह धामी के स्टैंड को भी रावत ने खारिज कर दिया है .
धामी के हाईलेवल कमेटी गठित करने के बाद भी तीर्थ पुरोहितों का शांत नहीं हुआ गुस्सा
पुरोहितों की नाराजगी को देखते हुए पिछले दिनों मुख्यमंत्री धामी ने ‘हाई लेवल कमेटी’ गठित करने के आदेश दिए. उन्होंने कहा कि सारे विवाद का हल होने तक देवस्थानम बोर्ड का काम रोका गया है. लेकिन इसके बाद भी तीर्थ पुरोहित शांत होने के ‘मूड’ में नहीं दिख रहे हैं.
बोर्ड को खत्म करने के लिए पिछले कई महीनों से चल रहा आंदोलन और तेज हो गया है. चारों धाम के तीर्थ पुरोहित और मंदिर कमेटी के सदस्य 2 महीने से बोर्ड के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने सरकार पर जानबूझकर लेटलतीफी और बोर्ड को खत्म करने के लिए कोई फैसला न लेने का आरोप लगाया. ‘केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित आचार्य संतोष त्रिवेदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खून से खत लिखकर देवस्थानम बोर्ड को तत्काल रूप से भंग करने की मांग की है’.
प्रदर्शनकारी तीर्थ पुरोहितों ने राज्य सरकार पर चार धाम के तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं सुधारने के बजाय परंपरा को बदलने की कोशिश का आरोप लगाया. उन्होंने आगे कहा कि ‘वे सभी पुजारी जो बीजेपी से जुड़े हुए हैं वे चरणबद्ध तरीके से पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं. केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने चेतावनी दी कि वे अपने परिवार के सदस्यों के साथ रुद्रप्रयाग में 1 सितंबर से प्रदर्शन करेंगे.
दूसरी ओर अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाने जा रही आम आदमी पार्टी भाजपा सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है और सरकार आने पर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की बात कह चुकी है.
चार धाम के मंदिरों को बेहतर रखरखाव के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने बोर्ड का किया था गठन
आइए जानते हैं देवस्थानम बोर्ड क्या है जिसका तीर्थ पुरोहित भंग करने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं. तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए चारधाम समेत कुल 51 मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था.
मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को सीईओ की जिम्मेदारी दी है, मुख्य सचिव, पर्यटन सचिव, वित्त सचिव इसके पदेन सदस्य के तौर पर नियुक्त किए गए हैं.
इसके अलावा भारत सरकार के संस्कृति विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को भी पदेन सदस्य नियुक्त किया गया है. टिहरी रियासत के सदस्य को भी बोर्ड में नामित किया गया है. सनातन धर्म का पालन करने वाले 3 सांसद और 6 विधायक भी बोर्ड में नामित होते हैं. इस बोर्ड का सरकार का उद्देश्य यात्रा की व्यवस्था को बेहतर बनाना है. लेकिन तीर्थ पुरोहितों को सरकार का यह फैसला पसंद नहीं आया.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार