पुण्य सलिला गंगा को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है. गंगा सिर्फ नदी ही नहीं बल्कि हमारी सभ्यता और आस्था का प्रतिमान भी है. ऋग्वेद, पद्मपुराण, महाभारत, गीता आदि पौराणिक ग्रंथों में गंगा का उल्लेख और माहात्म्य वर्णित है. गंगा निर्विवाद रूप से सभी सनातन सम्प्रदायों यथा शैव, वैष्णव, शाक्त आदि में पूजित हैं. माना जाता है की मनुष्य के सभी कायिक, वाचिक और मानसिक पाप गंगा की कृपा से नष्ट हो जाते हैं. वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा जयंती (Ganga Jayanti) मनाई जाती है जिसे गंगा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष यह शुभ दिन मंगलवार, 18 मई 2021 को है. आइये जानें क्यों है इस दिन का महत्त्व, क्या है गंगा का माहात्म्य और इस दिन क्या करें.
गंगा सप्तमी का महत्व
पृथ्वी पर तो गंगा जी का आगमन गंगा दशहरा के दिन हुआ था लेकिन उनके तीव्र व शक्तिशाली प्रवाह को नियन्त्रित कर पृथ्वी के सन्तुलन को बचाने के लिए भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया. जिस दिन गंगा ब्रह्मा के कमण्डल से भगवान शंकर की जटाओं में पहुंची थीं उस दिन वैशाख शुक्ल सप्तमी थी और इसलिए इस दिन को गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के नाम से जाना जाने लगा.
गंगा का माहात्म्य
गंगा की महिमा अनंत है. पद्मपुराण में गंगा की महिमा को वर्णित करते हुए कहा गया है कि मनुष्य के व्यभिचारी, पतित, दुष्ट, चांडाल तथा गुरुघाती होने पर भले ही उसके अपने लोग, पुत्र, पत्नी एवं मित्र त्याग देते हों परंतु गंगा उन्हें कभी भी नहीं त्यागतीं अर्थात् अपने शरण में आये हुए को सब पापों से मुक्त कर देती हैं. महाभारत में गंगाजल के संदर्भ में कहा गया है की जिस प्रकार देवताओं के लिए अमृत है उसी प्रकार मनुष्यों के लिए गंगाजल है. गीता उपदेश के दौरान गंगा के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताते हुए कहा ‘स्रोतसामस्मि जाह्नवी’ अर्थात् सभी प्रवाहों में मैं गंगा हूं.
गंगा सप्तमी पर क्या करें
गंगा सप्तमी पर गंगा की पूजा और गंगा स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है की इस दिन गंगा पूजन व गंगा स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है और उसके यश व मान में वृद्धि होती है. यदि कोई जातक गंगा स्नान कर पाने में असमर्थ है तो वह गंगा का ध्यान करते हुए किसी अन्य नदी या सरोवर में स्नान कर गंगा जयंती का पूजन कर सकता है. इसके भी अभाव में घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर पूजन कर सकते हैं. इस दिन वाल्मीकि ऋषि द्वारा रचित ‘गंगाष्टक स्तोत्र’ या आद्य शंकराचार्य जी द्वारा रचित ‘गंगा स्तोत्र’ का पाठ बहुत लाभकारी और गंगा स्नान के बराबर फल देने वाला माना गया है. गंगा जयंती के दिन तर्पण, दान और पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन सत्तू, जलपूर्ण कलश, पादुका और पंखा दान करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है.