नई दिल्ली| वैश्विक राजनीति में हलचल और कोरोना वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर चिंता कम होने से कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. इस समय कच्चा तेल बढ़कर 87 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है, जो 7 साल का उच्चतम स्तर है. साप्ताहिक आधार पर यह लगातार 5वां सप्ताह है, जब कच्चे तेल में तेजी है. अक्टूबर 2014 के बाद से कच्चे तेल में यह रिकॉर्ड तेजी है.
जानकारों का कहना है कि इस समय कच्चे तेल की मांग ज्यादा है और आपूर्ति कम है. इसलिए भाव में तेजी आ रही है. दुनियाभर में कारोबारी गतिविधियों में तेजी से आने वाले समय में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हो सका है. इससे भारत सरकार के लिए पेट्रोल-डीजल के दाम पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाएगा. इससे ग्राहकों को झटका लग सकता है.
यमन के हूती विरोधियों ने 17 जनवरी 2022 को अबूधाबी में तेल टैंक ब्लास्ट किया था. इसमें 3 नागरिकों की मौत हो गई. यह अटैक ड्रोन की मदद से किया गया. इस महीने हूती विद्रोहियों का यह दूसरा हमला था. हूती विद्रोही ऐसा तेल प्रोडक्शन में रुकावट डालने के लिए कर रहे हैं. इस घटना के बाद कच्चे तेल की कीमतें और तेजी से बढ़ी हैं.
मॉर्गन स्टैनली का अनुमान है कि इस साल की तीसरी तिमाही तक कच्चे तेल का भाव 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा. पिछले दिनों एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (EIA) और ब्लूमबर्ग ने साल 2022 के लिए ओपेक देशों का तेल उत्पादन क्षमता को घटकार 8 लाख और 12 लाख बैरल रोजाना कर दिया था.
इस रिपोर्ट के बाद जेपी मॉर्गन ने आने वाले दिनों में कच्चे तेल के भाव में 30 डॉलर प्रति बैरल तक के उछाल का अनुमान लगाया है. उसके मुताबिक, इस साल कच्चे तेल का भाव 125 डॉलर और 2023 तक 150 डॉलर तक पहुंच सकता है.
कैसे बिगड़ सकता है सरकार का बजट
-अनुमान के मुताबिक, अगर कच्चे तेल का भाव 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ता है तो इससे राजकोषीय घाटे में 10 आधार अंकों का इजाफा होता है.
-भारत बड़े पैमाने पर कच्चा तेल आयात करता है. तेल आयात बिल बढ़ने से करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) भी बढ़ता है.
-इसके साथ महंगाई भी बढ़ती है, जिससे आरबीआई के लिए नीतिगत ब्याज दरों को उदार बनाए रखना मुश्किल होगा.
-आयात बिल बढ़ने से डॉलर रिजर्व घटेगा, जिससे रुपये में कमजोरी आएगी.
-इस तरह कच्चे तेल में उछाल से सरकार का बैलेंसशीट पूरी तरह बिगड़ जाएगा.