सीएम पद की आस लगाए हरीश रावत की बढ़ी चिंता, कांग्रेस खेल सकती है दलित सीएम का दांव

उत्तराखंड में भी पंजाब की तरह ही कांग्रेस दलित मुख्यमंत्री का दांव खेल सकती है. माना जा रहा है कि इस दौड़ में सबसे आगे दिग्गज नेता यशपाल आर्य का नाम है. सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, दोनों ही पंजाब के फैसले को उत्तराखंड में भी दोहराना चाहते हैं.

हालांकि, इस पर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है. अब कांग्रेस की इस नई संभावित योजना ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब प्रभारी रहे हरीश रावत को चिंता में डाल दिया है.

दलित नेता आर्य और उनके बेटे हाल ही में भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए. उनके इस फैसले से दलित सीएम वाली अटकलों और हवा मिल गई है.

इधर, आर्य का कांग्रेस वापसी करने का फैसला राज्य में सत्ता जारी रखने की कोशिश में लगी बीजेपी और सीएम उम्मीदवार बनाए जाने की उम्मीद में बैठे रावत के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है.

गांधी परिवार से मुलाकात के बाद आर्य के कांग्रेस में शामिल होने के दौरान रावत भी कांग्रेस मुख्यालय पहुंच गए थे. उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता वापसी की जद्दोजहद में है. साथ ही दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी भी पहाड़ी राज्य में अपनी राह तलाश रही है.

2013 में आई विनाशकारी बाढ़ के कारण विजय बहुगुणा को पद छोड़ना पड़ा था, जिसके बाद साल 2014 में रावत को राज्य की कमान दी गई थी. हालांकि, 2016 में ही 9 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद रावत सरकार गिर गई थी. उस दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था और 2017 के चुनाव में बीजेपी सत्ता में आ गई थी.

बीजेपी से कुछ और नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की संभावनाओं के बीच रावत की चिंता बढ़ गई है. आर्य को रावत का बड़ा प्रतिद्विंद्वी माना जाता है. रावत के समर्थक उम्मीद कर रहे हैं कि वह ही सीएम उम्मीदवार होंगे.

यह एक बड़ा कारण रहा, जिसके चलते वे पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त होने पर जोर दे रहे थे, लेकिन सोनिया गांधी के कहने पर रावत पद पर रहने के लिए सहमत हो गए.

कहा जा रहा है कि पंजाब में सीएम के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी की नियुक्ति के बाद कांग्रेस इस फॉर्मूले को 2024 में भी दोहराने की उम्मीद में है. उत्तराखंड में दलित करीब 23 फीसदी हैं, जबकि, हरीश रावत ठाकुर समुदाय से आते हैं.

यहां आबादी में इनकी हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. लेकिन पंजाब को देखते हुए कांग्रेस सियासी बढ़त के लिए यह दांव खेलने के मूड में बताई जा रही है.

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