कुछ वर्षों से कांग्रेस की लगातार हार होती जा रही है, उसके बावजूद भी गांधी परिवार इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. इसके बावजूद भी कांग्रेस में विचारधारा, संगठन और शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर कोई खास बदलाव नहीं हो रहा है. इसके उलट जो लोग इस तरह के बदलाव की मांग कर रहे हैं उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.
‘बता दें कि सात अगस्त को कांग्रेस के 23 प्रमुख नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस में संगठन, उसकी कार्यप्रणाली और नेतृत्व में परिवर्तन की मांग की थी. इसके बाद भी पार्टी में कोई नया परिवर्तन देखने को नहीं मिला’, हालत यह है कि पार्टी के पास अभी एक नियमित अध्यक्ष नहीं है.
‘सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यवाहक या अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं। कांग्रेस के कई शीर्ष नेता अब गांधी परिवार का कोई अध्यक्ष देखना नहीं चाहते हैं’. कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट यह है कि वह हर जरूरी सवाल से भाग रही है.
नेतृत्व का मसला सुलझाए और संगठन में बदलाव किए बिना कांग्रेस का संकट खत्म नहीं होने वाला है लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसे छोड़कर हर बार कुछ नया प्रयोग करने लग जा रहा है। नेतृत्व का मसला सुलझाए और संगठन में बदलाव किए बिना कांग्रेस का संकट खत्म नहीं होने वाला.
पिछले दिनों ही गांधी परिवार के दो बहुत खास और कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल भी अब नहीं रहे’. अब गांधी परिवार को अपनी सोच और विचारधारा में कुछ परिवर्तन लाना होगा. पिछले दिनों शिवसेना भी कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रही है. जबकि वह महाराष्ट्र में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रही है, उसके बावजूद वह विरोध में आ खड़ी हुई है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार