पश्चिम बंगाल को लेकर कांग्रेस शुरू से ही असमंजस में रही. यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व राज्य के नेताओं पर चुनाव की जिम्मेदारी छोड़ रखी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव प्रचार की अभी तक कमान संभाल रखी है.
‘बंगाल चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की कमजोर तैयारियों और गांधी परिवार की उपेक्षा से सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म रहा’. राहुल गांधी या प्रियंका के बंगाल में अभी तक प्रचार करने के लिए न जाने पर दक्षिण भारत के राज्यों पर ज्यादा फोकस करना और सीपीएम को कारण माना जा रहा है.
बता दें कि एक ओर जहां सीपीएम बंगाल में कांग्रेस की सहयोगी है वहीं केरल में वह प्रमुख प्रतिद्वंदी भी है. ऐसे मे पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ प्रचार करने से केरल में लड़ाई कमजोर पड़ सकती है. इसलिए पार्टी केरल में मतदान तक बंगाल में प्रचार से परहेज कर रही थी.
इस विरोधाभास से बचने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता अभी तक बंगाल में चुनाव प्रचार से बचते रहे थे, लेकिन अब केरल में मतदान समाप्त होने पर राहुल गांधी ने बंगाल को फोकस किया है. हालांकि इसके साथ कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती है. बंगाल में कांग्रेस चुनाव को त्रिकोणीय नहीं बनने देना चाहती थी.
त्रिकोणीय संघर्ष होने पर भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा होगा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलने की संभावना थी. यही वजह है कि कांग्रेस पूरे बंगाल के बजाय खुद को अपने मजबूत गढ़ मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर के इलाके तक ही सीमित रखे हुए हैं. इन क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत हैं और यहां से उसे जीत की उम्मीद भी दिख रही है.
इसके अलावा कांग्रेस के सहयोगी कई राजनीतिक दल भी ममता बनर्जी को अपना समर्थन दिए हुए हैं. राष्ट्रीय जनता दल, जेएमएम, शिवसेना राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ( एनसीपी) समेत कुछ और दल ममता के साथ खड़े हुए हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार