कुछ फैसले और निर्णय ऐसे होते हैं जो इंसान को जल्दी लेने चाहिए. देर से लिए गए फैसले अक्सर ‘गहरे जख्म’ देते हैं. एक बात तीर कमान से निकल गया तो वह वापस नहीं आता. ऐसी ही एक घटना उत्तराखंड में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के खिलाफ रविवार को देखने को मिली. सीएम रावत फैसले लेने की ‘सोचते ही रह गए’, उससे पहले उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. अदालत के इस फैसले के बाद उत्तराखंड की भाजपा सरकार की किरकिरी शुरू हो गई है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला. पिछले एक महीने से देवभूमि की सियासत में भाजपा विधायक महेश नेगी को लेकर सियासत गरमाई हुई है.
विधायक नेगी पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया था. विधायक पर रेप के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह लगातार अनदेखी करते चले आ रहे थे. आरोपी विधायक के पक्षपात करने को लेकर कई बार विपक्षी नेताओं ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर हमला भी बोला था, लेकिन मुख्यमंत्री रावत ने इन आरोपों को दरकिनार कर दिया था. विपक्षी नेताओं की मांग थी कि मुख्यमंत्री अपने भाजपा विधायक महेश नेगी पर मुकदमा दर्ज कराएं. आखिरकार नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीएम रावत की स्थिति उस समय शर्मसार हो गई, जब उसके विधायक के खिलाफ रेप के मामले में उत्तराखंड शासन को केस दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश देने पड़े.
हाईकोर्ट के आदेश पर बीजेपी विधायक महेश नेगी पर मुकदमा दर्ज किया गया है. यही नहीं भाजपा विधायक की पत्नी को भी रेप केस में आरोपी बनाया गया है. यहां हम आपको बता दें कि एक महिला की ओर से विधायक महेश नेगी पर रेप का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए गए.
महिला ने विधायक के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था
ब्लैकमेलिंग के आरोपों में घिरी महिला ने अल्मोड़ा के द्वारहाट से भाजपा विधायक महेश नेगी और उनकी पत्नी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था. बता दें कि एक युवती ने आरोप लगाया था कि महेश नेगी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और विधायक से उनकी बेटी है. लिहाजा विधायक बच्ची को पिता होने के साथ ही अन्य अधिकार दे. देहरादून पुलिस मामले में पीड़िता की ही गिरफ्तारी की दिशा में बढ़ रही थी.
दूसरी तरफ, पुलिस ने पीड़िता की तहरीर पर विधायक के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया. इस पर पीड़िता ने हाईकोर्ट की शरण ली. कोर्ट ने पीड़िता की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. साथ ही विधायक और उनकी पत्नी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए हैं. उससे पहले पीड़िता ने महिला आयोग तक शिकायत की. जबकि बाल आयोग ने भी मामले का संज्ञान लेते हुए पुलिस को जांच के आदेश दिए थे. जिसमें डीएनए रिपोर्ट को लेकर हुए खुलासे के बाद कार्रवाई के आदेश हुए थे. इसके बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार अपने विधायक को बचाती रही.
भाजपा विधायक के मामले में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने त्रिवेंद्र सरकार को घेरा था
भाजपा विधायक महेश नेगी पर कार्रवाई को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर विपक्षी पार्टियों का जबरदस्त दबाव था. लेकिन सीएम रावत ने इस मामले को ‘बेहद ही हल्के रूप में लिया’. अपने विधायक पर रिपोर्ट दर्ज न कराने को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री रावत के खिलाफ सड़कों पर उतरकर जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन किया था. आम आदमी पार्टी के नेताओं ने तो इसे वर्ष 2022 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में मुद्दा भी बनाने का एलान कर डाला था.
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने भी एक सितंबर को आरोपी भाजपा विधायक के खिलाफ उत्तराखंड के सभी 13 जिला मुख्यालयों पर भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किए थे. यही नहीं भाजपा विधायक पर राज्य में सियासत भी गर्म चली आ रही थी. इसके बावजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने विधायक का बचाव ही करते रहे . अब जब हाईकोर्ट के आदेश पर आरोपित भाजपा विधायक पर मुकदमा दर्ज कर लिया है तब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
हाईकोर्ट आदेश के बाद रिपोर्ट दर्ज करने से अच्छा होता सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा विधायक पर एक्शन लेते
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