इसी साल 9 मार्च को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने पद से राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा दे रहे थे उनका ‘दर्द’ भी छलक रहा था. चेहरे पर ‘खामोशी’ छाई हुई थी. मुख्यमंत्री पद से उन्हें क्यों हटाया गया त्रिवेंद्र सिंह रावत यह भी नहीं बता पा रहे थे.
जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उनसे पूछा गया कि आपको इस्तीफा क्यों देना पड़ा तब उन्होंने कहा था इसके लिए ‘दिल्ली’ जाना होगा. उसके बाद 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत ने राज्य की कमान संभाल ली. अब 4 महीने से भी कम अंतराल पर एक बार फिर उत्तराखंड की सियासत ने ‘करवट’ ली.
‘आज उसी मोड़ पर आकर तीरथ सिंह रावत खड़े हो गए हैं जहां त्रिवेंद्र सिंह रावत आ गए थे’. शुक्रवार रात करीब 11 बजे तीरथ सिंह रावत ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया है. शनिवार सुबह से ही राजधानी देहरादून में भाजपा नेताओं की ‘भागदौड़’ शुरू है. दिल्ली के दो भाजपा के पर्यवेक्षक भी देहरादून पहुंच चुके हैं. अब देवभूमि अपने नए ‘नायक’ के नाम का इंतजार कर रही है.
हालांकि अटकलें कई नामों पर लगाई जा रही हैं लेकिन अंतिम फैसला आज शाम 3 बजे होने वाली विधायक दल की बैठक में होना है. संभव है भाजपा फिर एक बार कोई ‘चौंकाने’ वाला नाम आगे कर सकती है. जैसे पिछली बार तीरथ सिंह रावत का किया था, सभी अटकलें धरी रह गई थीं. उत्तराखंड की सियासी उथल-पुथल के बीच आइए जब तक तीरथ सिंह रावत को लेकर एक और चर्चा कर ली जाए.
‘तीरथ सिंह रावत ही एक ऐसे नेता रहे जो उत्तराखंड की मुख्यमंत्री कुर्सी पर सबसे कम समय के लिए काबिज हो सके’. 3 महीने 23 दिन के अपने कार्यकाल में सियासत की वह ‘जादूगरी’ नहीं सीख सकें जो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी को मजबूती के साथ भाजपा हाईकमान की उम्मीदों पर खरे उतर पाते. अपने ‘बड़बोले बयान’ और मौके का फायदा उठाने में वह पूरी तरह ‘चूक’ गए.
तीरथ सिंह रावत समझ बैठे कि भाजपा हाईकमान ने उन्हें अगले वर्ष फरवरी-मार्च में होने वाले राज्य विधान सभा चुनाव के लिए ‘कमान’ सौंप दी है. यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी . उसके साथ एक और सुनहरा मौका ‘गंवा’ बैठे . अप्रैल महीने में अल्मोड़ा की ‘सल्ट’ विधान सभा उपचुनाव चुनाव न लड़ना सबसे बड़ी गलती थी. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद उनका माहौल ठीक बना था वह यहां से उपचुनाव ‘जीत’ भी जाते ?बता दें कि ‘शुक्रवार रात 11 बजे तीरथ सिंह रावत ने राजभवन में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को त्यागपत्र सौंपने के बाद बीजापुर अतिथि गृह में कहा कि अभी इस्तीफा देकर आ रहा हूं.
उन्होंने कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 और संविधान की धारा 164 के चलते संवैधानिक संकट की स्थिति थी. इसे देखते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देना उचित समझा पूर्व में विधानसभा की सल्ट सीट से उपचुनाव न लड़ने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि तब वे कोरोना संक्रमण की चपेट में थे.
इसलिए उनके पास समय नहीं था. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तीन महीने और 23 दिन के अपने कार्यकाल में नेतृत्व क्षमता साबित नहीं कर पाए, यही उन पर भारी पड़ गया’.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार