कृषि कानून को देश में मैंने तो लागू नहीं किया था जो मैं दिल्ली में हुई हिंसा, उपद्रव और आगजनी के झमेले में पड़ूं, अगर ‘कृषि कानून का किसान विरोध कर रहे हैं तो यह केंद्र सरकार और भाजपा वाले जाने’.
माना कि मैं दिल्ली का मुखिया हूं लेकिन भाजपा सरकार ने दिल्ली पुलिस भी हमारी सरकार के हवाले नहीं की, तो मैं दिल्ली में हुए उपद्रव की चिंता क्यों करूं. केंद्र सरकार और उपद्रवी किसानों की वजह से अगर राजधानी जलती है तो इसकी जिम्मेदारी उन्हीं को लेनी होगी, जिन्होंने इसकी शुरुआत की है.
जी हां हम बात कर रहे हैं आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की. राजधानी में हुई हिंसा के बाद सियासत भी खूब हो रही है . इन सबके बीच दिल्ली की गद्दी पर विराजमान केजरीवाल दो दिन तक मौन बने रहे.
जबकि आम आदमी पार्टी पूरे देश में ‘दिल्ली मॉडल’ का बखान कर ढिंढोरा पीटती आ रही है, लेकिन जब दिल्ली लहूलुहान और शर्मसार हो जाती है तब मुख्यमंत्री केजरीवाल छुपे फिरते हैं.
बता दें कि सियासी तौर पर दिल्ली के सबसे बड़े प्रधान अरविंद केजरीवाल ही हैं राजधानी में अगर कोई भी घटना होती है तो मुख्यमंत्री केजरीवाल का बयान सबसे पहले आना चाहिए था. लेकिन वह किसानों और केंद्र सरकार के पचड़े में न पड़ते हुए दिखाना चाहते थे.
आखिरकार राजधानी में हिंसा के दो दिन बाद यानी गुरुवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सियासत के मार्केट में निकले. अब आपको बताते हैं आज केजरीवाल ने सबसे पहले आम आदमी पार्टी की जमकर मार्केटिंग की उसके बाद दिल्ली में हुई हिंसा पर भी अपने ‘विचार व्यक्त’ किए.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए छह राज्यों में चुनाव लड़ने का एलान भी कर डाला, उसके बाद अराजकतत्वों की दिल्ली में फैलाई गई हिंसा और तोड़फोड़ पर केजरीवाल ने अपनी चुप्पी तोड़ी. पहले हम बात करेंगे केजरीवाल की राज्यों में चुनाव लड़ने के एलान की .
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार