देहरादून| पुष्कर सिंह धामी ने 23 मार्च को उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और इसके साथ ही वे उत्तराखंड के पांचवें ऐसे सीएम बन गए जो विधायक नहीं हैं.
उनसे पहले नारायण दत्त तिवारी जब उत्तराखंड के सीएम बने थे तब वे विधायक नहीं थे, फिर भुवन चंद्र खंडूरी, विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत भी सीएम बने और सभी लोग बाय इलेक्शन के जरिये विधानसभा पहुंचे.
धामी को अब छह महीने के भीतर चुनाव जीतकर आना है. सवाल ये है कि अब धामी किस सीट से चुनाव लडेंगे. क्या सीएम उन्हीं सीटों में से किसी एक का चुनाव करेंगे, जहां उनकी पार्टी के विधायक उनके लिए सीट छोड़ने का ऑफर कर चुके हैं या फिर कांग्रेस का कोई विधायक उनके लिए सीट छोड़ेगा? बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व दायित्व धारी वीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि ये पार्टी नेतृत्व और सीएम को डिसाइड करना है कि वे चुनाव कहां से लडेंगे.
चर्चा ये भी है कि पार्टी अपने किसी विधायक से सीट खाली कराने के बजाए कांग्रेस में सेंधमारी करने के पक्ष में है. सियासी तौर पर बीजेपी के लिए इसे ज्यादा फायदेमंद माना जा रहा है.
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के एक विधायक से बीजेपी संपर्क भी साध चुकी है. पार्टी हाईकमान, सीएम और संगठन की सहमति बनी तो पार्टी इस एंगल पर भी विचार कर सकती है. कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि कुछ भी हो सकता है. सभी विकल्प खुले हैं.
उत्तराखंड में दो मौकों पर विपक्षी पार्टी के विधायक मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट छोड़ चुके हैं. वर्ष 2007 में तत्कालीन सीएम बीसी खंडूरी के लिए कांग्रेस विधायक टीपीएस रावत तो 2012 में सीएम विजय बहुगुणा के लिए बीजेपी विधायक किरण मंडल ने सीट छोड़ी थी.
इस बार भी ज्यादा संभावना ये है कि बीजेपी इतिहास को एक बार फिर दोहरा सकती है. दरअसल, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने हाल में चंपावत का दौरा किया तो चर्चा चली कि कहीं सीएम उप चुनाव की तैयारी में तो नहीं. पिछले हफ्ते देहरादून कैंट सीट में हुए एक कार्यक्रम में सीएम धामी ने विधासभा से अपने जुड़ाव को बताया तो फिर अटकलें लगीं. दोनों सीट बीजेपी के पास हैं. सूत्रों की मानें तो चंपावत की कांग्रेस विधायक वाली लोहाघाट सीट भी बीजेपी के रडार पर है.
साभार-न्यूज़ 18