चतुर्मास 20 जुलाई दिन मंगलवार से शुरू हो रहा है और 14 नवंबर को देवोत्थान एकादशी के दिन समापन होगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी तिथि तक चतुर्मास रहता है.
देवोत्थान एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में आ जाते हैं इसलिए इस दिन से हर साल चार महीनों के लिए चतुर्मास लग जाता है. वहीं देवोत्थान एकादशी के भगवान विष्णु विश्राम काल पूर्ण करके क्षीर सागर से बाहर निकलकर सृष्टि का संचालन करने लग जाते हैं. इन चार महीनों में समय निकालकर आप किसी तीर्थ यात्रा पर जाने के बारे में विचार कर रहे हैं तो भगवान कृष्ण की ब्रज नगरी में जरूर जाएं. अगर आप ब्रज नगरी को छोड़कर अन्य तीर्थ स्थलों पर इन चार महीनों के लिए जाते हैं तो तीर्थ यात्रा का पुण्य फल नहीं मिलेगा.
आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह
यह तो हम सभी जानते हैं कि प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है. लेकिन श्रीगर्ग संहिता के अनुसार, चतुर्मास के समय में तीर्थराज प्रयाग ब्रजधाम आकर पूजा-अर्चना करते हैं. दरअसल इसकी शुरुआत शंखासुर नामक एक दैत्य से हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब ब्रह्माजी निद्रा में थे तब शंखासुर ने उनके सभी वेदों को चुरा लिया था और उन वेदों को चुराकर समुद्र में छिप गया था. तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर समुद्र में जाकर शंखासुर का वध किया और प्रयागराज में ब्रह्माजी को सभी वेद सौंप दिए. तब भगवान विष्णु ने प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा घोषित कर दिया.
भगवान विष्णु द्वारा प्रयाग को तीर्थराज घोषित करने पर प्रयागराज को अभिमान हो गया. प्रयागराज का अभिमान दूर करने के लिए नारद मुनि तीर्थराज के पास पहुंचे और कहा कि आपको तीर्थराज तो बना दिया है लेकिन वास्तव में आप तीर्थराज है नहीं. नारदजी की बात सुनकर तीर्थराज ने सभी तीर्थों को अपने यहां आमंत्रित किया. प्रयागराज के बुलावे पर सभी तीर्थ पहुंचे लेकिन ब्रजधाम उपस्थित नहीं है. इससे तीर्थराज प्रयाग नाराज हो गए और सभी तीर्थों को इकट्ठा करते ब्रजधाम पर आक्रमण कर दिया. तीर्थराज को ब्रजधाम से युद्ध करने पर हार का सामना करना पड़ा.
इसके बाद सभी तीर्थों को लेकर प्रयागराज भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास पहुंचे. इस पर भगवान विष्णु ने तीर्थराज प्रयाग को समझाया कि ब्रज पर आक्रमण करने वाले की हमेशा हार ही होती है. मैंने तुमको पृथ्वी के सभी तीर्थों को राजा बनाया है लेकिन अपने घर का राजा नहीं बनाया है. ब्रजधाम मेरा घर है और वह एक परम धाम है. प्रलयकाल में भी ब्रजधाम का संहार नहीं होता है. इसके बाद भगवान विष्णु ने सभी तीर्थों को ब्रजधाम में रहकर प्रायश्चित करने का आदेश दिया. तब से सभी तीर्थ देवशयनी एकादशी से लेकर देवप्रबोधनी एकादशी तक ब्रज में निवास करते हैं. साथ ही इस दौरान जो भी ब्रजधाम की यात्रा करता है, उसे सभी तीर्थों का पुण्य फल प्राप्त होता है. इस कारण ब्रजधाम का प्रयागराज से अधिक महत्व है.
व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो चतुर्मास वर्षा ऋतु का महीना होता है और ज्यादातर तीर्थ पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित हैं. बरसात के दौरान पहाड़ी क्षेत्रों की यात्रा करना सुरक्षा के लिहाज से उचित नहीं है क्योंकि इस दौरान भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं ज्यादा बढ़ जाती हैं. ऐसे में चतुर्मास के समय ब्रजधाम की यात्रा करना सही माना गया है क्योंकि ब्रज क्षेत्र समतल भूमि पर स्थित है. साथ ही सभी तीर्थों के यहां पर कृष्ण लीलाओं का आनंद प्राप्त किया जाता है. इसलिए चतुर्मास के समय ब्रजधाम की यात्रा करना ज्यादा सौभाग्यशाली माना जाता है.
चतुर्मास ज्ञान और सिद्धियां प्राप्त करने का महीना होता है. इस महीने में दान-पुण्य करने का फल अधिक मिलता है. चतुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है क्योंकि भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में होते हैं. चतुर्मास में भगवान विष्णु अपने परम भक्त राजा बलि के यहां पाताल लोक में रहते हैं, जिससे इस समय पृथ्वी लोक में उनको सोया हुआ माना जाता है. इन चार महीनों में भगवान शिव के अवतार रुद्र सृष्टि का संचालन करते हैं.