अभी तक किसानों के आंदोलनों से केंद्र सरकार कहीं न कहीं दबाव में जरूर थी. इसी वजह से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल किसान संगठन नेताओं से 12 दौर की वार्ता भी कर चुके थे. राजधानी दिल्ली में उपद्रव के बाद सरकार और बीजेपी नेताओं को फ्रंटफुट पर खेलने का मौका मिल गया है.
‘भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा ने तो किसानों को लेकर कहा कि जिन्हें हम अन्नदाता समझ रहे थे वह तो उग्रवादी निकले’. बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि, जो शंका थी वो सही साबित हुई, हैं किसान संगठन बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे कि अनुशासन रहेगा कि हम जश्न में शामिल हो रहे हैं.
यह जश्न था या गणतंत्र दिवस के दिन भारत पर हमला ? भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि किसान संगठनों ने किसी भी नियम का पालन नहीं किया, जिन शर्तों पर उन्हें ट्रैक्टर रैली निकालने की पुलिस ने इजाजत दी थी. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को उपद्रवियों ने पूरा हाईजैक कर लिया.
बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि देश की छवि धूमिल करने के लिए राजधानी में गणतंत्र दिवस जैसे मौके पर हिंसक प्रदर्शन की साजिश रची गई. वहीं सरकार को बजट सत्र में किसानों के मुद्दे पर अपनी बात मजबूती से रखने का मौका जरूर मिल गया है.
ऐसे में विपक्ष संसद में सरकार को किसानों के मुद्दे पर घेरने की रणनीति बना रहा था, लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद विपक्ष खुलकर किसानों के साथ अपने आपको खड़ा नहीं दिखाएगा. दिल्ली में जिस तरह का उत्पात हुआ है, उसके चलते विपक्ष ने पूरी तरह से किनारा कर लिया है.
विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि हिंसा को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता है. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिवसेना ने हिंसा की आलोचना की.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार