राजद्रोह मामला: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा ये जवाब, दिया 24 घंटे का समय

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर वह अपने विचारों से अवगत कराए.

प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की उन दलीलों पर गौर किया जिनमें कहा गया है कि उसने एक उपयुक्त मंच द्वारा राजद्रोह कानून की “पुन: जांच और पुनर्विचार” कराने का फैसला किया है. पीठ ने इस सुझाव पर भी केंद्र से प्रतिक्रिया देने को कहा कि क्या पुनर्विचार होने तक भविष्य में राजद्रोह के मामलों के दाखिल करने पर अस्थायी रोक लगाई जाए.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस संबंध में सरकार से निर्देश लेंगे और बुधवार को इससे पीठ को अवगत कराएंगे.पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे काफी स्पष्ट कर रहे हैं. हम निर्देश चाहते हैं. हम आपको कल तक का समय देंगे. हमारे विशिष्ट सवाल हैं: पहला लंबित मामलों के बारे में और दूसरा, यह कि सरकार भविष्य के मामलों पर कैसे गौर करेगी….’’

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीमकोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा कि उसका निर्णय औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों के अनुरूप है और वह नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं. हलफनामे में कहा गया है कि इसी भावना से 1,500 से अधिक अप्रचलित हो चुके कानूनों को समाप्त कर दिया गया है. सुप्रीमकोर्ट राजद्रोह संबंधी कानून की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र को यह सूचित करने के लिए 24 घंटे का समय दिया कि क्या वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तब तक निर्देश जारी करेगा जब तक कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 ए की समीक्षा करने की सरकार की प्रस्तावित कवायद पूरी नहीं हो जाती, केंद्र बुधवार को जवाब के साथ वापस आएगा.

इस बीच, शीर्ष अदालत ने देशद्रोह कानून की फिर से जांच होने तक सुनवाई टालने के केंद्र के प्रस्ताव पर सहमति जताई. इससे पहले, अदालत ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने में कितना समय लगेगा और सरकार इसके दुरुपयोग को कैसे दूर करेगी.

एक दिन पहले, सरकार ने कहा कि वह ब्रिटिश काल के कानून की फिर से जांच कर रही है और अदालत से इस मामले पर उसके समक्ष सुनवाई याचिकाओं पर आगे नहीं बढ़ने का आग्रह किया.



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