आज बात शुरू करने से पहले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का प्रसिद्ध नारा ‘जय जवान जय किसान’ याद कर लेते हैं.
‘मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर रोक लगाकर केंद्र की भाजपा सरकार को बता दिया कि देश में कानून से बड़ा कोई नहीं है, अदालत के इस फैसले के बाद आज देश का किसान जवान हो गया, क्योंकि अभी तक उसे लग रहा था कि केंद्र सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है तो कौन सुनेगा, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने बता दिया कि अभी उसी का फैसला सबसे ऊपर है’.
‘बता दें कि अभी तक केंद्र सरकार कई मामलों में कठोर फैसले लेती रही है लेकिन आज अदालत ने केंद्र सरकार के लिए कड़ा फैसला सुनाया’. आइए हम आपको वर्ष 2014 में लिए चलते हैं. यह वही साल था जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ था. उसके बाद अब तक लगभग साढ़े 6 वर्षों में मोदी सरकार ने कई विधेयकों को पारित करा कर कानून बनाया। संसद में पास कराए गए कई विधेयकों पर भाजपा सरकार ने अपनी पीठ भी थपथपाई.
लेकिन पिछले साढ़े तीन महीने पहले केंद्र सरकार ने आनन-फानन में कृषि कानून पारित कराया था. देश में इस कानून को लागू होने के बाद भाजपा सरकार का विरोध ही शुरू हो गया था. इस बार केंद्र का विरोध कर रहे थे वह अन्नदाता यानी किसान थे. पंजाब-हरियाणा और राजस्थान से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन धीरे-धीरे राजधानी दिल्ली तक आ पहुंचा. उसके बावजूद भी केंद्र सरकार आकलन लगाती रही कि यह किसानों का विरोध-प्रदर्शन कुछ दिनों बाद खत्म हो जाएगा.
दिल्ली में डेरा जमाए किसानों और केंद्र सरकार के बीच लगभग आठ दौर की बातचीत हुई जो बेनतीजा साबित हुई. केंद्र सरकार का कृषि कानून पर अडिग रहना और किसानों का राजधानी में विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा था. इस बीच इन दोनों के बीच सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी हुई आखिरकार 12 जनवरी आज एक ऐसा ऐतिहासिक दिन साबित हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सरकार के तीनों कृषि कानून पर रोक लगाने पर भाजपा सरकार को सबसे बड़ा झटका लगा है.
हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को हुई सुनवाई में संकेत दे दिए थे कि हम केंद्र के इस कानून पर रोक लगा सकते हैं. शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही मसले के हल के लिए चार सदस्यीय एक कमेटी का भी गठन किया.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार