उत्तराखंड| साल में सिर्फ एक रात खिलने वाला रहस्यमयी फूल ब्रह्म कमल इस बार अक्टूबर के महीने में खिलता दिखा. विशेषज्ञ इस बात को लेकर हैरान हैं क्योंकि दैवीय माने जाने वाले इस फूल के खिलने का सही वक्त जुलाई-अगस्त है, वो भी किसी एक दिन ही खिलता है.
अब उत्तराखंड के चमोली में इसके ढेर के ढेर खिले हुए हैं. जानिए, क्या है ब्रह्म कमल और क्यों बेहद खास माना जाता है.
ऊंचाई पर ही मिलते रहे
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ये कमल के फूल की एक खास किस्म है, जो भारत में हिमाचल, हिमालय और उत्तराखंड में पाई जाती है.
इसके अलावा इसके अलावा बर्मा और चीन के कुछ पहाड़ी इलाकों में भी ब्रह्म कमल दिखता है.
आमतौर पर ये फूल काफी दुर्गम स्थानों पर होता है और कम से कम 4500 मीटर की ऊंचाई पर ही दिखता है. हालांकि इस बार ये 3000 मीटर की ऊंचाई पर भी खिला है.
क्या कहती है माइथोलॉजी
ब्रह्म कमल को ब्रह्म देव का प्रिय फूल माना जाता है. मान्यता है कि दुनिया की रचना ब्रह्मा ने ही की और ये फूल उनका आसन है.
हिंदू माइथोलॉजी में अक्सर ब्रह्म देवता को कमल के फूल पर बैठा दिखाया जाता है. ये वही फूल माना जाता है.
महाभारत और रामायण में भी इस कमल फूल के बारे में बताया गया है. रामायण में लक्ष्मण के बेहोश होने के बाद इलाज और ठीक होने पर देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्म कमल ही थे, ऐसा कहते हैं.
किन्हें चढ़ता है ये कमल
पहाड़ों पर ये यह मां नन्दादेवी का भी प्रिय पुष्प है. इसे नन्दाष्टमी के समय तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना जरूरी माना जाता है. इ
सके तहत स्नान किया होना और किसी भी तरह के बुरे विचार मन में न होना जैसी बातें शामिल होती हैं. साथ ही कपड़ों की शुद्धि पर भी खास ध्यान दिया जाता है. नंदादेवी के अलावा केदारनाथ और बद्रीनाथ में भी ये पुष्प देवताओं पर चढ़ाया जाता है.
औषधि की तरह उपयोग
साल में केवल एक बार खिलने वाले इस फूल को पूरी तरह से खिलने में दो घंटे लग जाते हैं. इसमें यह 8 इंच तक खिल जाता है. कुछ घंटों बाद ये बंद हो जाता है.
फूल के कई चिकित्सकीय इस्तेमाल भी हैं. जैसे इसे आयुर्वेद में काफी मान्यता मिली हुई है. वैज्ञानिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम के साथ इसे कई दवाओं में काम में लाते हैं, जिनमें पुरानी खांसी सबसे मुख्य है.
कई असाध्य बीमारियों में दवा
कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के इलाज का भी दावा किया जाता है. इनके अलावा जननांगों की बीमारी, लिवर संक्रमण, यौन रोगों का इलाज भी इससे होता है.
हड्डियों में दर्द से राहत में भी कमल के फूल के रस का पुल्टिस बांधना आराम देता है. हालांकि अभी तक ऐसे किसी दावे की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो सकी है लेकिन स्थानीय स्तर पर ये काफी प्रचलित है और इसी वजह से कमल फूल ऊंचाई पर होने के बाद भी कम हो रहे हैं.
खेती होने लगी है
भारत के अलावा तिब्बत में भी इस फूल की काफी मान्यता है. वहां भी Sowa-Rigpa नामक आयुर्वेद से मिलती-जुलती शाखा के तहत इसका दवा बनाने में उपयोग होता है.
काफी मांग होने के कारण उत्तराखंड में बाकायदा इस फूल की खेती होने लगी है. ये पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है.
इस बार अक्टूबर में इस फूल के खिलने को देखकर विशेषज्ञ भी हैरान हैं. माना जा रहा है कि कोरोना के कारण हुई बंदी और सैलानियों के न होने के कारण प्रदूषण का स्तर काफी कम हुआ है. इसका असर इन फूलों पर दिख रहा है और वे कम ऊंचाई पर, बेमौसम भी खिल रहे हैं.
साभार-न्यूज़ 18