अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात को लेकर भाजपा हाईकमान पिछले दो दिनों से ‘फील गुड फैक्टर’ महसूस नहीं कर रहा है. इसका कारण है कि नए मुखिया (मुख्यमंत्री) को लेकर राज्य भाजपा के दिग्गज नेताओं की नाराजगी और विरोध आने वाले समय में अच्छे ‘संकेत’ नहीं दे रहे हैं.
इसके साथ गुजरात में भाजपा से उपेक्षित नेताओं का अपने सियासी भविष्य और आगे की रणनीति को लेकर जारी बैठकों से दिल्ली नेतृत्व जरूर चिंतित है. आइए अब बात को आगे बढ़ाते हैं और समझते हैं इन दिनों गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को लेकर ‘सियासी तापमान’ क्यों बढ़ा हुआ है. ‘भाजपा ने दो महीने पहले जुलाई में उत्तराखंड और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों को बदल दिया था.
इन दोनों राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन के बाद हाईकमान पार्टी के दिग्गज मंत्रियों और नेताओं की भारी नाराजगी और विरोध को बड़ी मुश्किल से शांत कर पाया था, उत्तराखंड और कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने के बाद उत्साहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने एक कदम और आगे बढ़ा दिया’. लेकिन अब की बारी थी उनके ही गृह राज्य गुजरात की. मोदी-शाह की जोड़ी ने यहां भी वही ‘फार्मूला’ अपनाया.
गुजरात में मुख्यमंत्री रहे विजय रूपाणी को अचानक हटाकर सियासी मैदान में नए चेहरे और अहमदाबाद की घाटलोडिया से साल 2017 में पहली बार विधायक चुने गए भूपेंद्र भाई पटेल को राज्य की सत्ता सौंप दी.
यह दांव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए ‘उल्टा’ पड़ गया. ‘आनन-फानन में भूपेंद्र पटेल को गुजरात के 17वें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई, लेकिन भूपेंद्र की ताजपोशी राज्य के पुराने अनुभवी दिग्गज नेताओं को रास नहीं आई’.
हाईकमान को गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर यही उम्मीद थी कि यहां मंत्रियों की नाराजगी को मना लिया जाएगा. ‘भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले को लेकर राज्य के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल का विरोध उसी दिन सामने आ गया था, क्योंकि वह मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश पाले हुए थे’.
लेकिन अब नितिन पटेल के साथ कई मंत्रियों और पुराने विधायकों के साथ नेताओं की नाराजगी बुधवार को और खुलकर सामने आ गई जब नवनियुक्त मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल राज्य में विजय रुपाणी के कार्यकाल के लगभग सभी मंत्रियों को हटाकर नए चेहरों को अपनी टीम में जगह देना चाहते हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार