उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को चार महीने के अंतराल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक लोकप्रिय दलित चेहरे की तलाश है. इन दिनों राज्य भाजपा के रणनीतिकार तीन-चार विधायकों को ‘टटोल’ रहे हैं कि कौन सा नेता ‘मिशन 22’ के लिए दलित वर्ग में फिट रहेगा.
पिछले दिनों धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे दलित नेता यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य के कांग्रेस में घर वापसी के बाद भाजपा में ‘बेचैनी’ बढ़ गई है. उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे और छह बार के विधायक यशपाल आर्य दलित समाज से आते हैं.
सूबे की दलित राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले यशपाल की छवि शांत और सादगी वाले नेता की है. इसके साथ उनकी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. मुख्यमंत्री धामी चाहते हैं, वह ऐसा नेता हो जो यशपाल आर्य की बहुत हद तक ‘भरपाई’ कर दे.
क्योंकि पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल के भाजपा छोड़ने के बाद सीएम धामी अपने मंत्रिमंडल में दलित चेहरे को मंत्री बनाना चाहते हैं. धामी सरकार में यशपाल आर्य के जाने के बाद खाली हुए मंत्री पद के लिए फिलहाल सबसे प्रबल दावेदारों में राजपुर रोड विधायक खजान दास, ज्वालापुर के सुरेश राठौर व बागेश्वर के चंदनराम दास के नाम की चर्चाएं हैं.
इसी को लेकर मंगलवार शाम को कुछ दलित विधायकों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की. वहीं दूसरी ओर पार्टी के कुछ दलित विधायकों ने तो दावेदारी भी पेश कर दी है. सीएम पुष्कर सिंह धामी अगर यह सीट भरते हैं तो पूर्व कैबिनेट मंत्री खजान दास के साथ विधायक चंदनराम दास और सुरेश राठौर की दावेदारी सबसे प्रबल बताई जा रही है. दूसरी ओर रायपुर से भाजपा विधायक जो कांग्रेस में जाते-जाते रह गए थे, उन्हें किसी प्रकार भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने ऐनमौके पर बचाया था.
उनको भी दिल्ली पार्टी हाईकमान ने उत्तराखंड सरकार में मंत्री का पद देने का आश्वासन दिया गया है. लेकिन मुख्यमंत्री चाहते हैं के इन 4 महीनों में होने वाले चुनाव से पहले किसी दलित विधायक को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करा कर अनुसूचित जाति वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत कर ली जाए.
चुनाव से पहले यशपाल के घर वापसी के बाद कांग्रेस दलित वर्ग में पैठ बनाने में जुटी
पंजाब में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने पिछले दिनों उत्तराखंड में भी दलित मुख्यमंत्री बनाने का ‘सियासी दांव’ खेला . उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि वह राज्य में साल 2022 में ‘दलित चेहरे’ को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं .
अब यशपाल आर्य की कांग्रेस में घर वापसी के बाद पार्टी ने दलितों में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है. वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दलित कार्ड से सियासी समीकरणों को प्रभावित करने की तैयारी कर ली है, जिसके तहत यशपाल की पार्टी ने घर वापसी कराई गई . बता दें कि उत्तराखंड में यशपाल आर्य को दलित राजनीति का केंद्र माना जाता है. सूबे में पहले कांग्रेस को दलित वर्ग का बड़ा समर्थन मिलता रहा, पर 2017 के विधानसभा चुनाव में इस वर्ग का रुझान भाजपा के प्रति तेजी से बढ़ा है.
यह इससे भी साबित होता है कि दलित कोटे के लिए आरक्षित 12 विधानसभा सीटों में से 10 पर भाजपा के प्रत्याशी निर्वाचित हुए थे. कांग्रेस को सिर्फ पुरोला से राजकुमार और भगवानपुर से ममता राकेश के रूप में दो सीटें मिलीं थी.राजकुमार पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर चुके हैं. वहीं भाजपा के टिकट से आरक्षित सीटों पर बाजपुर से यशपाल आर्य और नैनीताल से उनका बेटा संजीव आर्य जीते थे.
अगर उत्तराखंड में दलित आबादी की बात की जाए तो अनुसूचित जाति की आबादी 18.50 फीसदी के करीब है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 18,92,516 है. उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में दलित आबादी 10.14 लाख है जबकि तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में 8.78 लाख है. सूबे में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी हरिद्वार जिले में 411274 है.
यशपाल आर्य के कांग्रेस में जाने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दलित वर्ग में अपनी पकड़ बनाने के लिए एक लोकप्रिय चेहरे को जल्द ही आगे लाना चाहते हैं. इसके लिए वे पिछले दिनों से दिल्ली हाईकमान से भी सलाह करने में जुटे हुए हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार